________________ लेते हैं, इसलिए विद्वानों की अपेक्षा उदाहरणादिक के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। विशेष : सूत्र पठित 'हि' शब्द यस्मात् इस अर्थ में है। यतः जैसे व्याप्ति का ग्रहण हो जाए उस प्रकार से अर्थात् तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति के द्वारा अन्वयव्याप्ति और व्यतिरेक व्याप्ति के ग्रहण का उल्लंघन न करके ही हेतु का प्रयोग किया जाता है, अतः उतने मात्र से अर्थात् दृष्टान्तादिक के बिना ही व्युत्पन्न पुरुष व्याप्ति का अवधारण कर लेते हैं। दृष्टान्तादिक का प्रयोग साध्य की सिद्धि के लिए फलवान नहीं है, आचार्य भगवन् इसको बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं - तावता च साध्यसिद्धिः॥ 93 // सूत्रान्वय : तावता = उतने मात्र से, च = ही, साध्यः = साध्य की, सिद्धिः = सिद्धि होती है। सूत्रार्थ : उतने मात्र से ही साध्य की सिद्धि हो जाती है। नोट : इस सूत्र में च शब्द एवकार अर्थ में है। संस्कृतार्थ : तस्य साध्याविनाभाविनो हेतोः प्रयोगादेव साध्यसिद्धिः जायते / अतः साध्यसिद्धौ दृष्टान्तादयो नोपयुक्ताः। टीकार्थ : उस साध्य अविनाभावि हेतु के प्रयोग से ही साध्य की सिद्धि हो जाती है, इसलिए साध्य की सिद्धि में दृष्टान्तादिक की कोई आवश्यकता नहीं है। विशेष : उतने मात्र से अर्थात् जिसका विपक्ष में रहना निश्चित रूप से असंभव है, ऐसे हेतु के प्रयोग मात्र से ही साध्य की सिद्धि हो जाती है। अतः उसके लिए दृष्टान्तादिक का प्रयोग कोई फलवाला नहीं है। इसी कारण से पक्ष का प्रयोग सफल है, यह दिखलाने के लिए सूत्र कहते हैं - तेन पक्षस्तदाधार सूचनायोक्तः॥ 94 // सूत्रान्वय : तेन = इसी कारण से, पक्ष : = पक्ष का, तत् = उसका, आधारः = आधार की, सूचनाय = सूचना के लिए, उक्तः = कहा गया है। 120