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________________ दृढीकृतं यद्व्युत्पन्नायोदाहरणादीनां प्रयोगस्यावश्यकता नो विद्यते। टीकार्थ : यह देश अग्नि वाला है, अग्निमान होने पर ही धूमवान की प्राप्ति हो सकती है, अथवा अग्नि वाला के अभाव में धूम वाला हो ही नहीं सकता व्युत्पन्न के लिए इस प्रकार प्रयोग करना चाहिए। इस दृष्टान्त में यह दृढ़ किया गया है कि विद्वानों के लिए उदाहरण आदि के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। विशेष : जो न्याय शास्त्र में प्रवीण हैं, उनके लिए अनुमान का प्रयोग प्रतिज्ञा के साथ तथोपपत्ति या अन्यथानुपपत्ति रूप हेतु से ही करना चाहिए क्योंकि उनके लिए उदाहरणादिक शेष अवयवों के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। कोई कहता है कि साध्य साधन के अतिरिक्त दृष्टान्तादि के प्रयोग की व्याप्ति के ज्ञान कराने में उपयोगी है, फिर व्युत्पन्न पुरुषों की अपेक्षा से उनका प्रयोग क्यों नहीं ? इसका समाधान देते हैं - हेतुप्रयोगो हि यथा व्याप्तिग्रहणं विधीयते सा च तावन्मात्रेण व्युत्पन्नैरवधार्यते॥ 92 // सूत्रान्वय : हेतुप्रयोगः = हेतु का प्रयोग, यथा = जैसे, व्याप्तिग्रहणं = व्याप्ति का ग्रहण, विधीयते = किया जाये, सा = उस प्रकार से, तावन्मात्रेण = उतने मात्र से, व्युत्पन्नैः = विद्वानों के द्वारा, अवधार्यते = निश्चय कर लिया जाता है, हि = क्योंकि। सूत्रार्थ : जैसे हेतु का प्रयोग व्याप्ति को ग्रहण करता है, उतने मात्र से बुद्धिमानों के द्वारा धारण किया जाता है। संस्कृतार्थ : उदाहरणादिकं विना एव तथोपपत्तिमतोऽन्यथानुपपत्तिमतो वा हेतोः प्रयोगेणैव व्युत्पन्ना व्याप्तिं ग्रह्णन्ति, अतस्तदपेक्षयोदाहरणादि प्रयोगस्यावश्यकता नो विद्यते। टीकार्थ : उदाहरण आदि के बिना ही तथोपपत्तिमान का और अन्यथानुपत्ति का हेतु के प्रयोग से ही बुद्धिमान लोग व्याप्ति का निश्चय कर 119
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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