________________ व्युत्पन्नप्रयोगस्तु तथोपपत्त्याऽन्यथानुपपत्त्यैव वा॥ 90 // सूत्रान्वय : व्युत्पन्नप्रयोगः = विद्वान् प्रयोग, तु = परन्तु, तथोपपत्ति = तथोपपत्ति, वा = अथवा, अन्यथानुपपत्ति = अन्यथानुपपत्ति, एव = ही। सूत्रार्थ : व्युत्पन्नपुरुषों के लिए तथोपत्ति या अन्यथानुपपत्ति नियम से ही प्रयोग करना चाहिए। . . संस्कृतार्थ : व्युत्पन्नप्रयोगस्तु तथोपपत्त्या,अन्यथानुपपत्त्यैव वा विधेयः / .. टीकार्थ : विद्वान् पुरुषों के लिए तथोपपत्ति के द्वारा अथवा अन्यथानुपपत्ति के द्वारा प्रयोग करना चाहिए। नोट : सूत्र में क्रियते पद शेष है एवं व्युत्पन्नस्य प्रयोग-व्युत्पन्न का प्रयोग एवं व्युत्पन्नाय - व्युत्पन्न के लिए इस प्रकार षष्ठी तत्पुरुष एवं चतुर्थी तत्पुरुष समास से विग्रह करना चाहिए। 261. तथोत्पत्ति किसे कहते हैं ? साध्य के सद्भाव में साधन का सद्भाव होना। 262. अन्यथानुपपत्ति किसे कहते हैं ? साध्य के अभाव में साधन का न होना। अब व्युत्पन्न प्रयोग की उदाहरण द्वारा पुष्टि - अग्निमानयं देशस्तथैव धूमवत्त्वोपपत्ते धूमवत्त्वान्यथानुपपत्तेर्वा // 91 // - सूत्रान्वय : अग्निमानं = अग्निवाला, अयम् = यह, देशः = देश, तथा = उस प्रकार, एव = ही, धूमवत्त्व = धूमवान, उपपत्तेः = प्राप्त होने पर, धूमवत्व = धूम वाला होकर, अन्यथानुपपत्तेः = अन्यथानुपपत्तिके, वा = अथवा। सूत्रार्थ : यह प्रदेश अग्नि वाला है क्योंकि अग्निवाला होने पर ही धूमवाला हो सकता है। अथवा अग्नि के अभाव में धूमवाला हो नहीं सकता। संस्कृतार्थ : अग्निमानयं देशः, अग्निमत्त्वे सत्येव धूमवत्वोपपत्तेः अग्निमत्त्वाभावे धूमवत्त्वानुपपत्तेश्च / व्युत्पन्नायैवमेवप्रयोगो विधेयः। दृष्टान्तेनानेन 118