________________ अत्रानेकान्तात्मकताया विरुद्धः एकान्तात्मकताया अभावो वस्तुनोऽनेकान्तात्मकता मेव साधयति, अतोऽत्रायं हेतुः विरुद्धस्वभावानुपलब्धि हेतुः प्रत्येतव्यः। टीकार्थ : अनेकान्तात्मक साध्य का विरोधी नित्यत्व आदि एकान्त है, न कि एकान्त पदार्थ को विषय करने वाला विज्ञान, क्योंकि मिथ्या ज्ञान के रूप से उसकी उपलब्धि संभव है। नित्यादि एकान्तरूप पदार्थ का स्वरूप अवास्तविक है अतः उसकी अनुपलब्धि है, इससे यह विरुद्धस्वभावानुपलब्धि हेतु का उदाहरण है। शंका : यहाँ पर कोई कहता है कि व्यापक विरुद्धकार्यादि हेतु और परम्परा से अविरोधि हेतुओं का पाया जाना बहुलता से संभव है। आचार्यों ने उनके उदाहरण क्यों नहीं दिए ? सूत्रकार उनकी शंका का समाधान करते हुए कहते हैं - परम्परासंभवत्साधनमत्रैवान्तर्भावनीयम्॥ 86 // सूत्रान्वय : परम्परया = परम्परा से, संभवत् = संभव है, साधनम् = साधन को, अत्रैव = इनमें ही, अन्तर्भावनीयम् = अन्तर्भाव करना चाहिए। संस्कृतार्थ : गुरुपरम्परयासम्भवन्ति भिन्नानि साधनानि पूर्वोक्त साधनेष्वेवान्तर्भावनीयानि। टीकार्थ : गुरु परम्परा से और भी जो साधन (हेतु) सम्भव हो सकते हैं उनका पूर्वोक्त साधनों में ही अन्तर्भाव करना चाहिए। 260. सूत्र में अत्रैव से क्या ग्रहण करना है ? अत्रैव का तात्पर्य कार्यादि हेतुओं में। उसी साधन के उपलक्षण के लिए दो उदाहरण दिखलाते हैं - . अभूदत्र चक्रे शिवकः स्थासात्॥ 87 // सूत्रान्वय : अभूत् = हो गया है, अत्र चक्रे = इस चाक पर, शिवकः = शिवक, स्थासात् = स्थास होने से। सूत्रार्थ : इस चाक पर शिवक हो गया है, क्योंकि स्थास पाया जा रहा है। 115