________________ टीकार्थ : इस प्राणी में व्याधि विशेष है, निरामय चेष्टा नहीं होने से। यहाँ पर व्याधि विशेष के सद्भाव साध्य से विरोधि व्याधि विशेष के अभाव के कार्य नीरोग चेष्टा की अनुपलब्धि है। इसलिए यह हेतु विरुद्ध कार्यानुपलब्धि हेतु हुआ। अब विरुद्धकारणानुपलब्धि हेतु को कहते हैं - अस्त्यत्र देहिनि दुःखमिष्टसंयोगाभावात्॥ 84 // सूत्रान्वय : अस्ति = है, देहिनि = प्राणि में, अत्र = इसमें, दुःखम् = दुःख, इष्टसंयोग = इष्ट का योग, अभावात् = अभाव होने से। सूत्रार्थ : इस प्राणी में दुःख है क्योंकि इष्ट संयोग का अभाव है। संस्कृतार्थ : अस्त्यत्र देहिनि दुःखमिष्टसंयोगाभावात्। अत्र दुःख विरोधिनः सुखकारणस्येष्टसंयोगस्याभावो दुःखसद्भावमेव साधयति / अतोऽत्रायम् इष्ट संयोगाभावित्वहेतुः विरुद्धकारणानुपलब्धिहेतुरवगन्तव्यः। टीकार्थ : इस प्राणी में दुःख है, क्योंकि इष्ट संयोग का अभाव है। यहाँ पर दुःख के विरोधी सुख के कारण इष्ट संयोग का अभाव दुःख के सद्भाव को सिद्ध करता है, इसलिए यहाँ पर हेतु इष्ट संयोग अभावपना विरुद्धकारणानुपलब्धि हेतु जानना चाहिए। विशेष : दुःख का विरोधी सुख है, उसका कारण इष्टसंयोग है उसकी विवक्षित प्राणी में अनुपलब्धि है, अतः यह विरुद्धकारणानुपलब्धि हेतु हुआ। अब विरुद्धस्वभावानुपलब्धि रूप हेतु का उदाहरण कहते हैं - अनेकान्तात्मकं वस्त्वेकान्तस्वरूपानुपलब्धेः॥ 85 // सूत्रान्वय : अनेकान्तात्मकं = अनेक धर्म स्वरूप वाली, वस्तु = वस्तु का, एकान्त = एक धर्म, स्वरूप = स्वभाव, अनुपलब्धेः = प्राप्ति न होने से। ___ सूत्रार्थ : वस्तु अनेकान्तात्मक है अर्थात् अनेक धर्म वाली है, क्योंकि वस्तु का एकान्त रूप पाया नहीं जाता। संस्कृतार्थ : अनेकान्तात्मकं वस्त्वेकान्तस्वरूपानुपलब्धेः। 114