________________ तीन भेद हैं -1. विरुद्धकार्यानुपलब्धि, 2. विरुद्धकारणानुपलब्धि, 3 विरुद्धस्वभावानुपलब्धि। 256. विरुद्धकार्यानुपलब्धि किसे कहते हैं ? साध्य से विरुद्ध पदार्थ के कार्य का नहीं पाया जाना विरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु है। 257. विरुद्धकारणानुपलब्धि हेतु किसे कहते हैं ? साध्य से विरुद्ध पदार्थ के कारण का नहीं पाया जाना विरुद्ध कारणानुपलब्धि है। 258. विरुद्धस्वभावानुपलब्धि किसे कहते हैं ? साध्य से विरुद्ध पदार्थ के स्वभाव का नहीं पाया जाना विरुद्ध स्वभावानुपलब्धि हेतु है। 259. इन्हें विधि साधक क्यों कहा गया है ? ये तीनों ही हेतु अपने साध्य के सद्भाव को सिद्ध करते हैं, इसलिए विधि साधक कहा गया है। अब विरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु के उदाहरण को कहते हैं - यथास्मिन्प्राणिनि व्याधिविशेषोऽस्ति निरामयचेष्टानुपलब्धेः॥83॥ सूत्रान्वय : यथा = जैसे, अस्मिन् प्राणिनि = इस प्राणी में, व्याधि विशेषः = रोग विशेष, अस्ति = है, निरामय = रोग रहित, चेष्टा = प्रवृत्ति, अनुपलब्धः = प्राप्त न होने से। सूत्रार्थ : इस प्राणी में व्याधि-विशेष है क्योंकि निरामय (रोग रहित) चेष्टा नहीं पाई जाती है। संस्कृतार्थ :अस्मिन् प्राणिनि व्याधिविशेषोऽस्ति निरामयचेष्टानुपलब्धेः / अत्र व्याधि विशेषसद्भाव साध्याद् विरोधिनो व्याधिविशेषाभावस्य कार्यस्य नीरोगचेष्टायाः अनुपलब्धिः विद्यते। अतोऽयं हेतुः विरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु जार्तः। 113