________________ टीकार्थ : एक मुहूर्त पहले भरणी का उदय नहीं हुआ है क्योंकि अभी कृतिका का उदय नहीं है। यहाँ पर भरणि के उदय के अविरुद्ध उत्तर चर कृतिका के उदय का अभाव, भरणि के उदय की भूतता के अभाव को सिद्ध करता है, इसलिए यह हेतु अविरुद्धोत्तरचरोपलब्धि हेतु है। विशेष : यहाँ पर सूत्र पठित ततः एव पद से कृतिका के उदय की अनुपलब्धि का अर्थ ग्रहण किया है। अब अविरुद्धसहचरोपलब्धि को कहते हैं - ___ नास्त्यत्र समतुलायामुन्नामो नामानुपलब्धेः॥ 81 // सूत्रान्वय : नास्ति = नहीं है, अत्र = इसमें, समतुलायाम् = तराजू में, उन्नाम = ऊँचाई, नाम = नीचापन, अनुपलब्धेः = प्राप्ति नहीं होने से। सूत्रार्थ : इस तराजू में एक ओर ऊँचापना नहीं है, क्योंकि उन्नाम का अविरोधि सहचर नहीं पाया जाता है। संस्कृतार्थ : नास्त्यत्र समतुलायामुन्नामो नामानुपलब्धेः / अत्र उन्नामाद् अविरुद्धसहचरस्य नामस्याभावः उन्नामस्याभावं साधयति। अतोऽयं नामानुपलब्धित्वहेतुः अविरुद्धसहचरानुपलब्धिहेतु र्जातः।। ___टीकार्थ : इस तराजू में ऊँचापना नहीं है, क्योंकि नीचेपन का अभाव है। यहाँ पर ऊँचेपने का अविरुद्ध सहचर नीचेपन का अभाव ऊँचेपने के अभाव को सिद्ध करता है, इससे यह हेतु अविरुद्ध सहचरानुपलब्धि हेतु हुआ। अब विरुद्ध कार्यानुपलब्धि आदि हेतु विधि में सम्भव है और उसके भेद तीन ही हैं यह प्रदर्शित करने के लिए कहते हैं - विरुद्धानुपलब्धि विधौ त्रेधा विरुद्ध कार्यकारणस्वभावानुपलब्धिभेदात्॥ 82 // सूत्रान्वय : विरुद्धानुपलब्धिः = विरुद्धानुपलब्धि, विधौ = विधि से, त्रेधा = तीन प्रकार के, विरुद्धकार्यकारणस्वभावानुपलब्धि, भेदात् = भेद होने से। सूत्रार्थ : विधि के अस्तित्व को सिद्ध करने में विरुद्धानुपलब्धि के 112