________________ अविरुद्ध कारण अग्नि का अभाव धूम के अभाव को सिद्ध करता है। इसलिए यह हेतु अविरुद्धकारणानुपलब्धि है। अब अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धि हेतु को कहते हैं - न भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटं कृतिकोदयानुपलब्धेः॥ 79 // सूत्रान्वय : न = नहीं, भविष्यति = होगा, मुहूर्तान्ते = एक मुहूर्त के बाद, शकटं = रोहिणी नक्षत्र, कृतिका = कृतिका नक्षत्र, उदय = उदय की, अनुपलब्धेः = उपलब्ध नहीं होने से। सूत्रार्थ : एक मुहूर्त के पश्चात् रोहिणी का उदय नहीं होगा, क्योंकि कृतिका के उदय की अनुपलब्धि है। संस्कृतार्थ : न भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटं, कृतिकोदयानुपलब्धेः / अत्र शकटोदयादविरुद्धस्य पूर्वचरस्य कृतिकोदयस्याभावो मुहूर्तान्ते शकटोदयाभावं साधयति / अतोऽयं कृतिकोदयानुपलब्धित्वहेतुः अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धिहेतुः जातः। ___टीकार्थ : एक मुहूर्त के बाद रोहिणी का उदय नहीं होगा, क्योंकि कृतिका का उदय नहीं हुआ है। यहाँ पर रोहिणी के उदय के अविरुद्ध पूर्वचर कृतिका के उदय का अभाव एक मुहूर्त बाद रोहिणी के उदय के अभाव को सिद्ध करता है। इसलिए यह हेतु अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धि हेतु हुआ। अब अविरुद्ध उत्तरचर अनुपलब्धि हेतु का उदाहरण कहते हैं - नोगाद् भरणि: मुहूर्तात्प्राक् तत एव॥ 80 // सूत्रान्वय : नोद्गात् = नहीं हो चुका उदय, भरणिः = भरणि का, मुहूर्तात् = एक मुहूर्त पहले, ततः = उस कारण से, एव = ही। सूत्रार्थ : एक मुहूर्त पहले भरणि का उदय नहीं हुआ है क्योंकि उत्तरचर कृतिका का उदय नहीं पाया जाता। संस्कृतार्थ : नोद्गात् भरणिः मुहूर्तात्प्राक् तत एव। अत्र भरण्युदयात् अविरुद्धत्तरोचरस्य कृतिका उदयस्य अभावो भरण्युदयभूतताऽभावं साधयति। अतोऽयं हेतुः अविरुद्धोत्तरचरोपलब्धिहेतुः जातः / 111