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________________ न होने से। सूत्रार्थ : यहाँ पर अप्रतिबद्ध सामर्थ्य वाली अग्नि नहीं है, क्योंकि धूम नहीं पाया जाता है। संस्कृतार्थ : नास्त्यत्राप्रतिबद्धसामर्थ्योऽग्नि धूमानुपलब्धः। अत्र सामर्थ्यवतोऽग्नेरविरुद्धकार्यस्य धूमस्याभावो विद्यते, अतश्च प्रतीयते यदत्राग्निर्नास्ति, अस्ति चेद् भस्मादिभिराच्छन्नो विद्यते / एवमत्रायं धूमानुपलब्धित्वहेतुः अविरुद्धकार्यानुपलब्धिहेतुः विज्ञेयः / टीकार्थ : यहाँ पर बिना सामर्थ्य रुकी अग्नि नहीं है, क्योंकि धुआँ नहीं पाया जाता है। यहाँ पर सामर्थ्यवान अग्नि के अविरुद्ध कार्य धूम का अभाव है, इसलिए ज्ञात होता है कि यहाँ अग्नि नहीं है अगर है भी तो भस्म वगैरह से ढकी हुई है। इससे यहाँ धूम अनुपलब्धि हेतु अविरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु हुआ। विशेष : जिसकी सामर्थ्य अप्रतिबद्ध है, ऐसा कारण अपने कार्य के प्रति अनुपहत (अप्रतिहत) शक्ति वाला कहा जाता है। यहाँ पर अप्रतिहत शक्तिवाली अग्नि का अभाव आग के विरोधी कार्य धूम के नहीं पाये जाने से सिद्ध है। अतः यह अविरुद्ध कार्यानुपलब्धि हेतु का उदाहरण है। अविरुद्ध कारणानुपलब्धि हेतु को कहते हैं - नास्त्यत्र धूमोऽनग्नेः॥78॥ सूत्रान्वय : नास्ति = नहीं है, अत्र = यहाँ, धूम = धुआँ, अनग्नेः = अग्नि के नहीं होने से। सूत्रार्थ : यहाँ पर धूम नहीं है, क्योंकि धूम के अविरोधी कारण अग्नि का अभाव है। संस्कृतार्थ : नास्त्यत्र धूमोऽनग्नेः / अत्र धूमस्याविरुद्धकारणस्याग्नेरभावोधूमाभावं साधयति / अतोऽयम् अनग्नित्वहेतुः अविरुद्धकारणानुपलब्धिहेतुः जातः। टीकार्थ : यहाँ धूम नहीं है, क्योंकि अग्नि नहीं है। यहाँ पर धूम के 110
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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