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________________ प्रतिषेध होने पर, सप्तधा = सात प्रकार, स्वभाव व्यापककार्यकारण पूर्वोत्तर सहचर = व्यापक, कार्य,कारण पूर्वचर, उत्तरचर, सहचर, अनुपलम्भ = अभाव के, भेदात् = भेद से। संस्कृतार्थ : अविरुद्धानुपलब्धिः प्रतिषेधसाधिका जायते / तस्याः सप्त भेदा विद्यन्ते / अविरुद्धस्वभावानुपलब्धिः अविरुद्धव्यापकानुपलब्धिः अविरुद्धकार्यानुपलब्धिः अविरुद्धकारणानुपलब्धिः, अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धिः अविरुद्धोत्तरचरानुपलब्धिः, अविरुद्धसहचरानुपलब्धिश्चेति। टीकार्थ : प्रतिषेध अर्थात् अभाव को सिद्ध करने वाली अविरुद्धानुलब्धि के 7 भेद हैं - 1. अविरुद्धस्वभावानुपलब्धि, 2. अविरुद्धव्यापकानुपलब्धि, 3.अविरुद्धकार्यानुपलब्धि, 4. अविरुद्धकारणानुपलब्धि, 5. अविरुद्ध पूर्वचरानुपलब्धि, 6. अविरुद्धोत्तरचरानुपलब्धि, 7. अविरुद्धसहचरानुपलब्धि। विशेष : सूत्र पठित स्वभाव, व्यापक आदि पदों का पहले द्वन्द्वसमास करना है, पहले उसका अनुपलम्भ पद के साथ षष्ठी तत्पुरुष समास करना चाहिए। -- अविरुद्धस्वभावानुपलब्धि का उदाहरण नास्त्यत्र भूतले घटोऽनुपलब्धेः॥75॥ सूत्रान्वय : नास्ति = नहीं है, अत्र = इसमें, भूतले = पृथ्वीतल पर, घट = घड़ा, अनुपलब्धेः = उपलब्धि नहीं होने से। सूत्रार्थ : इस भूतल पर घट नहीं है क्योंकि उपलब्धि योग्य स्वभाव के होने पर वह भी नहीं पाया जा रहा है। संस्कृतार्थ : नास्त्यत्र भूतले घटोऽनुपलब्धेः / अत्र घटप्राप्ति रूपस्वभावस्य भूतलेऽभावो विद्यतेऽतः स घटाभावं साधयति / अर्थात् प्रतिषेध योग्यघटस्याविरुद्धस्वभावस्यानुपलम्भो वर्तते / अतोऽयमनुपलब्धित्वहेतुः अविरुद्धस्वभावानुपलब्धि हेतुः जातः। टीकार्थ : इस भूतल पर घड़ा नहीं है, क्योंकि उपलब्ध नहीं है। यहाँ पर घट के प्राप्त होने रूप स्वभाव का भूतल में अभाव है, इसलिए वह घड़े के अभाव को सिद्ध करता है। अर्थात् प्रतिषेध योग्य घट के अविरुद्धस्वभाव का 108
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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