________________ संस्कृतार्थ : नोदेष्यति मुहूर्तान्ते शकटं रेवत्युदयात् / अत्र शकटोदयाद् विरुद्धस्याश्विनी नक्षत्र पूर्वचरस्य रेवती नक्षत्रस्योदयो विद्यते / स चाश्विनीनक्षत्र पूर्वचरो वर्तते, अतएवाश्विनी नक्षत्रभावितामेव साधयिष्यति, शकटोदयञ्च निषेत्स्यति / अतोऽत्रायं रेवत्युदयत्वहेतुः विरुद्धपूर्वचरोपलब्धि हेतुर्जातः / टीकार्थ : एक मुहूर्त के बाद रोहिणी का उदय नहीं होगा क्योंकि रोहिणी के उदय से विरुद्ध अश्विनी नक्षत्र के पूर्वचर (पहले उदय वाला) रेवती का उदय हो रहा है। रेवती का उदय अश्विनी के उदय का पूर्वचर है, इसलिए वह अश्विनी के उदय की भाविता को ही सिद्ध करेगा, साधेगा और रोहिणी के उदय का निषेध करेगा, इसलिए यहाँ यह हेतु विरुद्धपूर्वचरोपलब्धि हेतु हुआ। विशेष : यहाँ रोहिणी के विरोधी अश्विनी का उदय है, उसका पूर्वचर रेवती नक्षत्र है। उसका उदय पाये जाने से यह विरुद्ध पूर्वचरोपलब्धि हेतु का उदाहरण है। अब विरुद्धोत्तरचरोपलब्धिहेतु को कहते हैं - नोद्गाद भरणि: मुहूर्तात्परं पुष्योदयात्॥ 72 // सूत्रान्वय : न = नहीं, उद्गात् = उदय, भरणिः = भरणि का, मुहूर्तात्परं = एक मुहूर्त पहले, पुष्योदयात् = पुष्य नक्षत्र का उदय होने से। सूत्रार्थ : एक मुहूर्त पहले भरणी का उदय नहीं हुआ है, क्योंकि अभी पुष्य नक्षत्र का उदय पाया जा रहा है। संस्कृतार्थ : नोद्गाद्भरणिः मुहूर्तात्पूर्वं पुष्योदयात। अत्र भरण्युदयात् विरुद्धस्य पुनर्वसूत्तरचरस्य पुष्यस्योदयो विद्यते / अर्थात् पुष्यनक्षत्रोदयः पुनर्वसुनक्षत्रोत्तरचरो वर्ततेऽतस्तस्यैवोदयं सूचयिष्यति यत् पुनर्वसूदयो भूतस्तथा च भूतभरण्युदयं निषेत्स्यति, अतोऽत्रायं पुष्योदयत्व हेतुः विरुद्धोत्तरचरोपलब्धि र्जातः। टीकार्थ : एक मुहूर्त पहले भरणि का उदय नहीं हुआ हैं। पुष्य का उदय हो रहा है। यहाँ पर भरणि के उदय से विरुद्ध पुनर्वसु के उत्तर चर (पीछे उदय) पुष्य नक्षत्र का उदय हो रहा है। अर्थात् पुष्य नक्षत्र का उदय पुनर्वसु का उत्तरचर है, इसलिए उसी ही के उदय को सूचित करेगा जो पुनर्वसु का उदय हो 106