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________________ रहा है इसमें कृतिका का उदय रूप पूर्वचर हेतु उदय होने वाले शकट रूप साध्य को साधता है अर्थात् यहाँ रोहिणी के उदय भाविता रूप साध्य को कृतिका उदयरूप पूर्वचर हेतु साध रहा है इसलिए यह हेतु अविरुद्धपूर्वचरोपलब्धि हेतुः कहा जाता है। विशेष : प्रतिदिन क्रम से एक-एक मुहूर्त के पश्चात् अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य आदि नक्षत्रों का उदय होता है। जब जिसका उदय विवक्षित हो, तब उसके पूर्ववर्ती नक्षत्र को पूर्वचर और उत्तरवर्ती नक्षत्र को उत्तर चर जानना चाहिए। . प्रसंगवश - रोहिणी का उदय साध्य है। वह उसके पूर्वचर कृतिका के उदय रूप हेतु से सिद्ध किया जा रहा है, अतः यह अविरुद्ध पूर्वचरोपलब्धि हेतु का उदाहरण है। अब अविरुद्ध उत्तर चरोपलब्धि हेतु को कहते हैं - उद्गाद् भरणिः प्राक्तत एव॥ 65 // सूत्रान्वय : उद्गाद् = उदय होना, भरणि = भरणि का, प्राक्ततः = एक मुहूर्त के पहले, एव = ही। सूत्रार्थ : भरणि का उदय एक मुहूर्त के पूर्व ही हो चुका है, क्योंकि कृतिका का उदय पाया जाता है। नोट : यहाँ पर मुहूर्तात् प्राक् पद का उध्याहार किया गया है एवं ततः एव पद से कृतिकोदयात् एव अर्थ ग्रहण किया गया है। ___ संस्कृतार्थ : मुहूर्तात्प्राक्भरणेरुदयो व्यतीतः कृतिकोदयात्। अत्र कृतिकोदयनामकोत्तरचरहेतुः भरण्युदयभूततारूपसाध्यं साधयति। अर्थादत्र भरण्युदयभूततायाः अविरुद्धोत्तरचरस्य कृतिकोदयस्योपलब्धिं विद्यते अतोऽयं हेतुः अविरुद्धोत्तरचरोपलब्धि हेतुः निगद्यते। .. . टीकार्थ : एक मुहूर्त के पहले ही भरणि का उदय हो चुका है, क्योंकि कृतिका का उदय हो रहा है। यहाँ पर कृतिका उदय नाम का उत्तर चर हेतु पहले उदय हो चुके भरणि के उदय को साधता है अर्थात् यहाँ भरणि के उदय की भूतता के अविरुद्ध उत्तरचर कृतिका के उदय की उपलब्धि है इसलिए यह हेतु अविरुद्धोत्तरचरोपलब्धि हेतु कहलाता है। 102
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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