SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और उसका अविरोधी कार्य वचनादिक हेतु है वह अपने साध्य की सिद्धि करता है, यह अविरुद्ध कार्योपलब्धि का उदाहरण है। अब अविरुद्ध कारणोपलब्धि रूप हेतु को कहते हैं - अस्त्यत्रच्छाया छत्रात्॥ 63 // सूत्रान्वय : अस्ति = है, अत्र = इसमें, छाया = छाया, छत्रात् = छत्र होने से। सूत्रार्थ : यहाँ पर छाया है क्योंकि छत्र पाया जाता है। संस्कृतार्थ : ‘अस्त्यत्र छाया छत्रात्' अत्र छत्रनामककारणहेतुः छायानामकसाध्यं साध्नोति / अर्थादत्रच्छायाः अविरुद्धकारणस्य छत्रस्योपलब्धि विद्यते / अतोऽयं हेतुः अविरुद्धकारणोपलब्धिहेतुः कथ्यते। ____टीकार्थ : यहाँ पर छाया है, छत्र होने से, इसमें छत्र नामक कारण हेतु छाया नामक साध्य को सिद्ध करता है। अर्थात् यहाँ छाया के अविरुद्धकारण छत्र की उपस्थिति है, इसलिए यह हेतु अविरुद्ध कारणोपलब्धि हेतु कहा जाता है। अब अविरुद्धपूर्वचरोपलब्धिरूप हेतु को कहते हैं - उदेष्यति शकटं कृत्तिकोदयात्॥ 64 // सूत्रान्वय : उदेष्यति = उदय होगा, शकटं = रोहिणी का, कृतिका = कृतिका नक्षत्र का, उदयात् = उदय होने से। सूत्रार्थ : (एक मुहूर्त के बाद) शकट (रोहिणी नक्षत्र) का उदय होगा, क्योंकि कृतिका का उदय हुआ है। नोट : यहाँ मुहूर्तान्त पद का अध्याहार करना चाहिए। संस्कृतार्थ : उदेष्यति शकटं कृतिकोदयाद् अत्र कृतिकोदयरूपं पूर्वचरहेतुः शकटोदयभावितारूपसाध्यं साध्नोति / अर्थादत्र शकटोदय भावितायाः अविरुद्धपूर्वचरस्य कृतिकोदयस्योपलब्धि विद्यते। अतोऽयं हेतुः अविरुद्ध पूर्वचरोपलब्धि हेतुः निगद्यते। टीकार्थ : रोहिणी नक्षत्र का उदय होगा क्योंकि कृतिका का उदय हो 101
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy