________________ 252. कृतक किसे कहते हैं ? | अपनी उत्पत्ति में अपेक्षित व्यापार वाला पदार्थ कृतक कहा जाता है और यह कृतकपना न कूटस्थ नित्यपक्ष में बनता है और न क्षणिक पक्ष में किन्तु परिणामी होने पर ही कृतकपना संभव है। 253. व्याप्य एवं व्यापक किसे कहते हैं ? जो अल्प देश में रहे, वह व्याप्य और जो बहुत देश में रहे, उसे व्यापक कहते हैं। 254. व्याप्य और व्यापक का उदाहरण क्या है ? कृतकत्व केवल पुद्गल द्रव्य में रहने से व्याप्य है और परिणामित्व आकाशादि सभी द्रव्यों में पाये जाने से व्यापक है। 255. परिणामी किसे कहते हैं ? जो प्रतिसमय परिणमनशील होकर भी अर्थात् पूर्व आकार का परि त्यागकर और उत्तर आकार को धारण करते हुए भी दोनों अवस्थाओं में अपने स्वत्व को कायम रखता है, उसे परिणामी कहते हैं। अब आचार्य अविरुद्ध कार्योपलब्धिरूप हेतु को कहते हैं - ___ अस्त्यत्र देहिनि बुद्धि ाहारादेः॥ 62 // सूत्रान्वय : अस्ति = है, अत्र = इसमें, देहिनि = प्राणी में, बुद्धिः = बुद्धि के कार्य, व्याहारदेः = वचनादि। सूत्रार्थ : इस शरीरधारी प्राणी में बुद्धि है क्योंकि बुद्धि के कार्य वचनादिक पाये जाते हैं। संस्कृतार्थ : अस्त्यत्र देहिनि बुद्धिः व्याहारादेरित्यत्र बुद्ध्यविरुद्ध कार्यस्य वचनादेस्पलब्धिः दृश्यते, अतोऽयम् अविरुद्धकार्योपलब्धिहेतुः कथ्यते। टीकार्थ : इस प्राणी में बुद्धि है, क्योंकि बुद्धि के कार्य वचनादि पाये जाते हैं। यहाँ बुद्धि के अविरुद्ध कार्य वचनादिक की उपलब्धि है। इसलिए यह अविरुद्ध कार्योपलब्धि हेतु है। विशेष : साध्य -बुद्धि है, हेतु-वचनादि, अतः यहाँ पर बुद्धि साध्य है 100