________________ किया जाने वाला होने से, यः = जो, एवं = इस प्रकार, सः = वह, दृष्टः = देखा जाता है, यथा = जैसे, घटः = घड़ा, कृतकः = किया जाने वाला, च = और, अयम् = यह, तस्मात् = इसलिए, परिणामी = परिणमन वाला, यः = जो, तु = परन्तु, न = नहीं, कृतकः = किया जाने वाला, दृष्टः = देखा गया, यथा = जैसे, बन्ध्या = बन्ध्या का, स्तन्धयः = पुत्र। सूत्रार्थ : शब्द परिणामी है क्योंकि वह कृतक होता है। जो इस प्रकार अर्थात् कृतक होता है वह इस प्रकार अर्थात् परिणामी देखा जाता है, जैसे - घड़ा। शब्द कृतक है इसलिए परिणामी है, जो परिणामी नहीं होता, वह कृतक भी नहीं देखा जाता है जैसे कि बन्ध्या का पुत्र / कृतक यह शब्द है, अतः वह परिणामी है। विशेष : प्रतिज्ञा शब्द परिणामी, हेतु-कृतक है अन्वय दृष्टान्त - घड़ा, उपनय -यह कृतक है, निगमन - इसलिए परिणामी, व्यतिरेक दृष्टान्त - बंध्या का पुत्र। संस्कृतार्थ : परिणामी शब्दः इति प्रतिज्ञा / कृतकत्वादिति हेतुः / यथा घटः इत्यन्वयदृष्टान्तः / यथा वन्ध्यास्तनन्धयः इति व्यतिरेकदृष्टान्तः / कृतकश्चाय मित्युपनयः। तस्मात्परिणामीति निगमनम्। एवमत्र पूर्वं बालव्युत्पत्त्यर्थम् अनुमानस्य यानि पञ्चांगानि अंगीकृतानि तान्युपदर्शितानि / अत्र कृतकत्वादिति हेतुः शब्दस्य परिणामित्वं साधयति, परिणामित्वेन व्याप्तं च वर्तते, अतोऽविरुद्धव्याप्योपलब्धिनामत्वं लभते। टीकार्थ : शब्द परिणामी है यह प्रतिज्ञा है। किया जाने वाला होने से यह हेतु है। जैसे घड़ा यह अन्वय दृष्टान्त है। जैसे-बंध्या का पुत्र यह व्यतिरेक दृष्टान्त है। यह कृतक है, यह उपनय है। इसलिए परिणामी है यह निगमन है। इस प्रकार इसमें पहले बालकों को ज्ञानार्थ अनुमान के जो 5 अंगों को स्वीकृत किया गया था, उनको दिखाया गया है। इसमें किया जाने वाला होने से यह हेतु परिणामपने को सिद्ध करता है और परिणामपने के साथ व्याप्त है, अतः परिणामित्व साध्य के अविरुद्ध व्याप्य कृतकत्व की उपलब्धि है। 99