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________________ 3. इनके क्षय के लिए जैसा बुद्धि पूर्वक अंतरोन्मुखी पुरुषार्थ होता है; वैसा अघाति कर्मों के क्षय के लिए नहीं होता है; अतः घाति कर्मों की मुख्यता से ही ये भेद किए गए हैं। इत्यादि अनेकानेक कारणों से घाति कर्मों के क्षय की मुख्यता से क्षायिकभाव के भेद किए गए होने से उनके नौ ही भेदों का वर्णन है। प्रश्न 6: क्षायोपशमिक भाव तथा उसके भेदों का स्वरूप स्पष्ट कीजिए। उत्तरः "क्षयोपशमः प्रयोजनमस्येति क्षायोपशमिकः - जिस भाव का क्षयोपशम प्रयोजन है, वह क्षायोपशमिक है।" "तेषां क्षयोपशमाद् क्षायोपशमिकः - उन कर्मों के क्षयोपशम से होनेवाला भाव क्षायोपशमिक है।" __ "क्षयोपशमेन युक्तः क्षायोपशमिकः - क्षयोपशम से युक्त भाव क्षायोपशमिक है।" तात्पर्य यह है कि आत्मा के जिन मिश्र भावों का निमित्त पाकर कर्मों का क्षयोपशम होता है, उन्हें; अथवा कर्मों की क्षयोपशम रूप दशा के समय होनेवाले जीव के विकसित-अविकसित मिश्र भावों को क्षायोपशमिक भाव कहते हैं। __अनुभाग की अपेक्षा घातिकर्म में देशघाति और सर्वघाति - इन दो स्वभावों वाली प्रकृतिआँ होती हैं। सर्वघाति प्रकृतिओं के वर्तमान कालीन स्पर्धकों के उदयाभावी क्षय, आगामी कालीन स्पर्धकों के सदवस्था रूप उपशम और देशघाति प्रकृतिओं के उदय की स्थितिमय कर्म की अवस्था क्षयोपशम कहलाती है। 'क्षयोपशम' शब्द के साथ संबंध वाचक ठञ् प्रत्यय का प्रयोग कर ‘क्षायोपशमिक' शब्द बनता है। मुख्यतया ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य – इन चार गुणों में ही मिश्र अवस्था होने से तथा उन संबंधी ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय - इन चार घाति कर्मों में ही क्षयोपशम दशा होने से क्षायोपशमिक भाव के 18 भेद हो जाते हैं। जिनका संक्षिप्त स्वरूप इसप्रकार है - ___ मति आदि चार ज्ञान - ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि अनन्त वैभव सम्पन्न अपने भगवान आत्मा को अपनत्वरूप से जानकर, मानकर, उसमें आंशिक स्थिरता से, ज्ञानावरण आदि कर्मों की क्षयोपशम रूप दशा के समय व्यक्त हुए ज्ञान गुण के विकसित-अविकसित रूप भावों को, जानने-योग्य पदार्थ तथा जानने की प्रक्रिया की पंचभाव /94
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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