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9. कर्म सापेक्ष जीव-परिणामों के अर्थ में भी 'भाव' शब्द का प्रयोग किया गया है ।
इत्यादि अनेकानेक अर्थों में 'भाव' शब्द का प्रयोग जिनागम में मिलता है । इनमें से यहाँ नौवाँ अर्थात् कर्म सापेक्ष जीव परिणामों के अर्थ में 'भाव' शब्द को लिया गया है।
प्रश्न 2: भाव के भेद-प्रभेदों की संख्या तथा नाम लिखिए ।
उत्तरः भाव के पाँच भेद हैं- औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक । आचार्य उमास्वामीदेव तत्त्वार्थसूत्र, द्वितीय अध्याय, सूत्र 1 में इसे इसप्रकार लिखते हैं – “औपशमिकक्षायिक भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च । "
इन पाँच भेदों के प्रभेदों की संख्या बताते हुए वे वहीं, सूत्र 2 में लिखते हैं “द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदाः यथाक्रमम् - यथाक्रम से इनके दो, नौ, अठारह, इक्कीस और तीन भेद हैं। "
वहीं, सूत्र 3 द्वारा औपशमिक भाव के दो भेद बताते हुए वे लिखते हैं " सम्यक्त्वचारित्रे औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र" ।
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वहीं, सूत्र 4 द्वारा क्षायिक भाव के नौ भेद बताते हुए वे लिखते हैं“ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च - क्षायिकज्ञान / केवलज्ञान, क्षायिकदर्शन/ केवलदर्शन, क्षायिकदान, क्षायिकलाभ, क्षायिकभोग, क्षायिक उपभोग, क्षायिक वीर्य तथा 'च' शब्द से पूर्वोक्त ग्रहण करना अर्थात् क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र । "
वहीं सूत्र 5 द्वारा क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद बताते हुए वे लिखते
हैं -
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“ज्ञानाज्ञानदर्शनलब्धयश्चतुस्त्रित्रिपञ्चभेदाः सम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्च - ज्ञान चार – मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय; अज्ञान तीन - कुमति, कुश्रुत, कुअवधि / विभंगावधि; दर्शन तीन - चक्षु, अचक्षु, अवधि लब्धि पाँच - क्षायोपशमिक दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक चारित्र और संयमासंयम । "
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वहीं, सूत्र 6 द्वारा औदयिकभाव के इक्कीस भेद बताते हुए वे लिखते हैं“गतिकषायलिङ्गमिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्धले श्याश्चतुश्चतुस्त्र्यैकैकैकैकषड्भेदाः
पंचभाव / 88
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