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पाठ 6
पंचभाव
. ('आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी देव का व्यक्तित्व-कर्तृत्व' 'वीतराग विज्ञान विवेचिका' के पृष्ठ 25-26 पर पढ़िए।)
प्रश्न 1: लोक तथा जिनागम में 'भाव' शब्द किन-किन अर्थों में आता है? उनमें से प्रस्तुत पाठ में कौन सा अर्थ लिया गया है?
उत्तरः लोक में 'भाव' शब्द किसी वस्तु का धन से मूल्यांकन करने, मान कषाय की वृद्धि होने इत्यादि अर्थ में आता है।
जिनागम में 'भाव' शब्द का प्रयोग विविध अर्थों में किया गया है। उनमें से कुछ प्रमुख अर्थ इसप्रकार हैं -
1. निरुक्ति परक अर्थ – “भवनं भवतीति वा भावः – होना मात्र या जो होता है, वह भाव है।'' राजवार्तिक ।। ___ “भवनं भावः, भूतिर्वा भावः इति भावसदस्स विउप्पत्ति – ‘होना' यह 'भाव' शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है ।" धवला।।।
2. गुण और पर्याय – दोनों के अर्थ में भी 'भाव' शब्द का प्रयोग हुआ है।
3. चित्त में उत्पन्न होनेवाले विकारों के अर्थ में भी 'भाव' शब्द का प्रयोग हुआ है।
___ 4. शुद्ध भाव या शुद्ध भाव के कारणभूत आत्मरुचि आदि के अर्थ में भी 'भाव' शब्द का प्रयोग हुआ है।
5. पंचास्तिकाय संग्रह, 107वीं गाथा की समय व्याख्या टीका में 'भाव' शब्द का प्रयोग नव पदार्थों के अर्थ में किया गया है।
6. अनन्त धर्मात्मक वस्तु की विद्यमानता के अर्थ में भी 'भाव' शब्द का प्रयोग हुआ है।
7. स्वचतुष्टयात्मक वस्तु के एक अंश स्वभाव को बताने के लिए भी 'भाव' शब्द का प्रयोग हुआ है।
8. द्रव्य-गुण-पर्यायात्मक या उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक समग्र वस्तु के अर्थ में भी ' 'भाव' शब्द का प्रयोग हुआ है।
तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /87