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हे ज्ञानपयोनिधि सीमंधर ! यह ज्ञानप्रतीक समर्पित है।
हो शान्त ज्ञेयनिष्ठा मेरी, जल से चरणाम्बुज चर्चित है।। इस छंद में जल संबंधी समस्त विशेषताओं को भगवान पर घटित करके, ज्ञान के प्रतीकरूप में जल को समर्पित कर, उसके माध्यम से अपनी ज्ञेयनिष्ठा को शांत करने की भावना भाई गई है। पूजक कहता है कि हे भगवन ! आप जल के समान शीतल हैं, जल के समान ही अत्यंत स्वच्छ निर्मल समस्त विकारों से रहित अविकारी हैं। यद्यपि मल को धो डालने में समर्थ होने से जल का एक नाम मल-परिहारी है; तथापि वास्तव में तो मिथ्यात्वरूपी मल को धोने में समर्थ होने के कारण आप ही मल-परिहारी हैं। हे भगवन ! आप सम्यग्ज्ञानरूपी जल के सागर/भंडार हैं, प्राणी मात्र के जीवन को अमर बनाने में निमित्तभूत दिव्यध्वनि रूपी अमृत की वर्षा करने के लिए जलधर/मेघ के समान हैं। आप भव्य जीवों के मनरूपी मछलिओं को प्राणदान देनेवाले पवित्र जल हैं तथा भव्य जीवों के मनरूपी जलज/कमल को विकसित करने के लिए उर्वरक जल हैं।
हे ज्ञान के भण्डार, ज्ञान सागर सीमंधर स्वामी ! आपके चरण कमलों की पूजा करने के लिए मैं यह ज्ञान का प्रतीकरूप जल समर्पित कर रहा हूँ। जैसे जल प्राणिओं की प्यास को शांत करता है; उसीप्रकार हे भगवान ! इस ज्ञानरूपी जल से मेरी ज्ञेयनिष्ठा/पदार्थों को जानने संबंधी प्यास/आकुलता शांत हो जाए। मैं भी आपके ही समान पर से पूर्ण निरपेक्ष रह अपने ज्ञान-स्वभाव में ही लीन रहूँ - इस भावना को पुष्ट करने के लिए ही ज्ञानरूपी जल से आपकी पूजन कर रहा हूँ। चंदन - चंदन-सम चन्द्रवदन जिनवर, तुम चन्द्रकिरण से सुखकर हो ।
भव-ताप निकंदन हे प्रभुवर ! सचमुच तुम ही भव-दुख-हर हो।। जल रहा हमारा अन्तःतल, प्रभु इच्छाओं की ज्वाला से। यह शान्त न होगा हे जिनवर रे ! विषयों की मधुशाला से।। चिर-अंतर्दाह मिटाने को, तुम ही मलयागिरि चंदन हो।
चंदन से चरचूँ चरणांबुज, भव-तप-हर ! शत-शत वंदन हो।। हे भगवान ! आपका चंद्रमा के समान पवित्र मुख या शरीर चंदन के समान शीतल है, चंद्रमा की किरणों के समान सुख देनेवाला है। संसार के ताप को नष्ट करनेवाले हे भगवन ! वास्तव में आप ही संसार के दुःख को नष्ट करनेवाले हैं। हे
सीमंधर पूजन /4