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स. सुख के सन्दर्भ में कुछ लोगों का मानना यह है कि कुछ विशिष्ट कार्य करके मनोकामना पूर्ण होने से, इच्छित वस्तु की प्राप्ति होने पर हम सुखी हो जाएंगे। वे इच्छाओं की पूर्ति को सुख और इच्छाओं की पूर्ति नहीं होने को दुःख . मानते हैं।
उनकी यह मान्यता निम्नलिखित कारणों से गलत है -
1. इच्छाओं की पूर्ति होना कभी सम्भव ही नहीं है; कारण की अनन्त जीवों में से प्रत्येक की इच्छाएं अनन्त हैं और भोग-सामग्री सीमित ही है। . ___2. एक इच्छा की पूर्ति होते ही तत्काल दूसरी नई इच्छा उत्पन्न हो जाती है। इसप्रकार कभी समाप्त नहीं होनेवाला इच्छाओं का प्रपातवत प्रवाह-क्रम सतत गतिमान रहने के कारण नित्य बदलती नवीन इच्छाओं की पूर्ति कभी सम्भव ही नहीं है।
___3. इच्छाओं की पूर्ति में सुख मानना तो शिर के भार को कन्धे पर रखकर सुख मानने के समान काल्पनिक है।
इसप्रकार समस्त इच्छाओं की पूर्ति कभी भी सम्भव नहीं होने के कारण, . इच्छाओं की पूर्ति में सुख मानना मिथ्या है। . - द. कितने ही लोगों का मानना है कि जितनी-जितनी इच्छाएं पूर्ण होती जाती हैं, उतना-उतना सुख होता जाता है; इसलिए वे सतत इच्छाओं को पूरा करने में लगे रहते हैं। उनका मानना है कि इच्छा की पूर्ति हो जाने पर वह नष्ट हो जाने से हम सुखी हो जाते हैं।
ऐसा मानना भी निम्नलिखित कारणों से यथार्थ नहीं है -- ___1. वास्तव में एक इच्छा पूरी होने के साथ ही अन्य इच्छाएं उत्पन्न हो जाती हैं; अतः सुख के स्थान पर आकुलता अधिक बढ़ जाती है।
2. अभी भी इच्छा की पूर्ति से हम सुख का अनुभव नहीं करते हैं; वरन् इच्छा की कमी से (इच्छाओं के आंशिक अभाव से) सुख का अनुभव करते हैं। . 3. इच्छाओं की पूर्ति कर्माधीन, संयोगाधीन होने से सतत पराधीनता रूप दुःख का ही वेदन होता रहता है।
4. इसमें भोगजन्य दुःख के तारतम्य रूप भेदमय काल्पनिक सुख को ही सुख माना जा रहा है।
तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /81 .