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5. जो देश इस समृद्धि की चरम सीमा छूने लगे हैं; जहाँ प्रत्येक व्यक्ति के पास ये सभी सुविधाएं हैं; वे भी सुख-शान्ति का अनुभव कहाँ कर रहे हैं। वे भी सतत अशान्त हैं, भयाक्रांत हैं; तनावयुक्त, दुःख का ही अनुभव करते हुए, सुखी होने का मार्ग शोध रहे हैं। __ इत्यादि कारणों से यह सिद्ध है कि भोग-सामग्री की प्राप्ति को सुख तथा भोगसामग्री को सुख-सामग्री मानना मिथ्या है। ___ ब. कुछ लोगों का मानना है कि सुख-दुःख तो अपनी मनो कल्पना है। अपने विचारों से हम सुखी हो सकते हैं और अपने ही विचारों से हम दुखी रह सकते हैं। जैसे दो मंजिल वाले मकान के मालिक किसी व्यक्ति के एक ओर पाँच मंजिल मकान है और दूसरी ओर टूटी झोपड़ी । यदि वह पाँच मंजिल वाले से अपनी तुलना करता है तो दुखी रहता है तथा यदि टूटी झोपड़ी वाले से अपनी तुलना करता है तो सुख. का अनुभव करता है। इसप्रकार उसका कहना यह है कि यदि सुखी रहना है तो सदा अपने से नीचे वालों को देखो; सुख-दुःख भोग-सामग्री में नहीं, अपनी विचारधारा में है। अपने विचार बदलकर, अपना दृष्टिकोण परिवर्तित कर हम सुखी हो सकते हैं। सुखी होना है तो दीन-हीनों की ओर देखो।
सुख के सन्दर्भ में उनकी यह मान्यता निम्नलिखित कारणों से गलत है - ___1. क्या सुख वास्तव में काल्पनिक ही है, उसकी कोई वास्तविक सत्ता नहीं है ? यदि नहीं; तो काल्पनिक उड़ानों में उड़ते रहनेवाले व्यक्ति को तो लोक में भी अच्छा नहीं माना जाता है; लोक भी उसका अनुकरण करना नहीं चाहता है, तब सुख के क्षेत्र में वह आदर्श कैसे हो सकता है ?
2. दीन-दुखिओं को देखकर तो लौकिक सज्जन भी दयार्द्र हो जाते हैं। दुखिओं को देखकर ऐसी कल्पना करके स्वयं को सुखी मानना कि 'मैं इनसे तो अच्छा हूँ' – उनके दुःख के प्रति अकरुणाभाव तो है ही, साथ ही मान कषाय की पुष्टि में संतुष्ट होने की स्थिति भी है। इसे सुख तो कोई बुद्धिमान-विचारक कभी भी नहीं मान सकता है। ___3. क्या सुख उस टूटी झोपड़ी में या दीन-हीनों में भरा हुआ है, जो उनकी ओर देखने से व्यक्त हो जाएगा?
वास्तव में यहाँ भी भोग जनित सुख को ही सुख मानकर बात की गई है, जो सर्वथा मिथ्या है।
सुख क्या है? /80