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________________ पाठ 5 | सुख क्या है? प्रश्न 1: अज्ञानी जीव किसे-किसे सुख मानता है ? तथा वैसा मानना मिथ्या/ गलत क्यों है ? उत्तरः अतीन्द्रिय आनन्दमय निराकुल स्वभावी वास्तविक सुख की पहिचान नहीं होने से अज्ञानी जीव विविध रूपों में सुख की कल्पना किया करता है; जो इसप्रकार है - . अ. अज्ञानी जीव भोग-सामग्री की प्राप्ति को सुख तथा भोग-सामग्री को सुखसामग्री मानता है। उसका मानना है कि पंचेन्द्रिय विषय भोगों के योग्य इष्ट सामग्री की सतत उपलब्धि ही सुख-समृद्धिमय दशा है। ईमानदारी पूर्वक अधिक परिश्रम करने से, अधिक अन्न उत्पन्न करने से, औद्योगिक-वैज्ञानिक उन्नति करने से देश में समृद्धि बढ़ने पर एक दिन ऐसा होगा जब प्रत्येक के पास खाने के लिए पौष्टिक आहार, पहिनने के लिए ऋतुओं के अनुकूल उत्तम वस्त्र, निवास के लिए वैज्ञानिक सुविधाओं से युक्त आधुनिक बंगला आदि समस्त सामग्री उपलब्ध होगी और सभी सुखी हो जाएंगे। निष्कर्ष यह है कि उसके अनुसार भोगमय जीवन ही सुखमय जीवन है तथा भोग-सामग्री प्राप्त करने के साधन ही सुखी होने के साधन हैं। ___ सुख के सन्दर्भ में उसकी यह मान्यता निम्नलिखित कारणों से गलत है - 1.यह सभी भोग-सामग्री पूर्णतया जड़, सुख स्वभाव से रहित होने के कारण हमें सुखी करने में सक्षम नहीं है; क्योंकि जो जिसके पास स्वयं नहीं हो, वह उसे दूसरों को नहीं दे सकता है। 2. सम्वेदन-योग्य दशाओं में लेन-देन का व्यवहार सम्भव नहीं होने के कारण कोई किसी को सुख-दुःख नहीं दे सकता है। 3. बाह्य सामग्रिओं का संयोग कर्माधीन होने से, उन्हें मात्र अपनी इच्छा के अनुसार, अपने पुरुषार्थ द्वारा इकट्ठा नहीं किया जा सकता है। ___4. संसार में किसी के भी एक मात्र पुण्य का उदय सम्भव नहीं होने से बाह्य सामग्री सतत उपलब्ध रह ही नहीं सकती है। तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /79
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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