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________________ इत्यादि प्रकार से इन दोनों में बहुत अन्तर है । प्रश्न 19: परिग्रह परिमाणव्रत और परिग्रह त्याग प्रतिमा में क्या अन्तर है ? उत्तरः वैसे तो ये दोनों एक पंचम गुणस्थान के ही भेद होने से समान हैं; तथापि इनमें स्वरूपगत कुछ अंतर है; वह इसप्रकार - परिग्रह परिमाणव्रत 1. यह आठ मूलगुणों में सातिचार तथा दूसरी व्रत प्रतिमा में निरतिचार रूप से पलनेवाला अणुव्रत है। 2. इसमें वीतरागता कुछ कम है। 3. यह जघन्य व्रती श्रावक कहलाता है । 4. परिग्रह का परिमाण होने पर भी यह व्यापार, सेवा आदि करता है । 5. परिमाण होने पर भी घर- कुटुम्ब के परिपालन की दृष्टि से इसके पास परिग्रह बहुत है । 6. यह सत्पात्रों को आहारदान आदि आरम्भ-परिग्रहमय दान देता है । 7. इसमें संसार, शरीर, भोगों के प्रति विशेष विरक्तता नहीं है । परिग्रहत्याग प्रतिमा यह आठ प्रतिमागत शुद्धि सम्पन्न वृद्धिंगत शुद्धिमय नवमीं प्रतिमा है । इसमें उसकी अपेक्षा वीतरागता विशेष अधिक है। यह मध्यम व्रती श्रावक कहलाता है । यह व्यापार, सेवा आदि कार्य का पूर्ण त्यागी है । इसके पास मात्र अपनी अत्यन्त आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अत्यल्प परिग्रह है । यह आरम्भ - परिग्रहमय दान नहीं देता है; मात्र ज्ञानदान और अभयदान देता है। इसमें इन संबंधी विशेष विरक्तता होने से यह शरीर - श्रृंगार का, स्त्री संबंधी विषय-भोग का पूर्णतया त्यागी है । इत्यादि प्रकार से इन दोनों में अन्तर है । एकादश प्रतिमा दसा, कही देसव्रत माँहि । वही अनुक्रम मूलसौं, गहौ सु छूटै नाँहि ॥ चौदह गुनथानक दसा, जगवासी जिय भूल । आस्रव संवरभाव द्वै, बंध मोख के मूल ॥ - नाटक समयसार, चतुर्दशगुणस्थानाधिकार, छन्द ७२, १२ पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावक की ग्यारह प्रतिमाए / 78
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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