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शरीर की लम्बाई से कम लम्बे वस्त्र को खण्डवस्त्र कहते हैं। जो अपने लिए बनाए गए भोजन, निवास आदि को ग्रहण नहीं करता है। अपने लिए किसी भी पदार्थ की याचना नहीं करता है, भोजन के लिए निमंत्रण से या बुलाने पर नहीं जाता है। यह पदार्थ मेरे लिए बनाया गया है - ऐसा आभास होने मात्र से भी उस पदार्थ को छोड़ देता है। इसे उद्दिष्ट त्याग प्रतिमाधारी कहते हैं।
इस उत्कृष्ट श्रावक के भी दो भेद हैं - ऐलक और क्षुल्लक । ऐलक दशा में पिच्छी, कमण्डलु के साथ तन पर एक लंगोटी भी होती है। आहार मुनिराजों के समान करपात्र (हाथ रूपी बर्तन) में होने पर भी मुनिराजों के समान खडगासन से नहीं होता है, वरन् पद्मासन से बैठकर लेते हैं। शेष केशलोंच आदि चर्या मुनिराजों के समान है; तथापि ये उत्कृष्ट श्रावक अणुव्रती ही हैं, महाव्रती नहीं हैं; अतः मुनिराजों के योग्य विनय-व्यवहार इनके प्रति नहीं होता है। इच्छाकार, इच्छामि आदि द्वारा इनके प्रति विनय-व्यवहार होता है।
क्षुल्लकदशा में कमण्डलु के स्थान पर धातु का बर्तन तथा पिच्छी के स्थान पर अत्यन्त मुलायम सूती वस्त्र भी हो सकता है तथा तन पर लंगोटी के साथ एक खंड वस्त्र भी होता है। ये पद्मासन से बैठकर किसी एक बर्तन में आहार लेते हैं तथा केशलोंच न कर, हजामत भी बना सकते हैं। ___नौ-नौ कोटिपूर्वक उद्दिष्ट आहार, वसतिका आदि के त्यागी, गृहत्यागी और शेष आरम्भ-परिग्रह के त्यागी दोनों ही हैं।
महिलाओं में इन भेदों को क्रमशः आर्यिका और क्षुल्लिका नाम से कहा जाता है। आर्यिका एक आठ मीटर की सूती सफेद साड़ी से तथा क्षुल्लिका इसके ही साथ एक खण्ड वस्त्र से अपना तन ढंकती हैं। शेष समस्त चर्या क्रमशः ऐलक और क्षुल्लक के समान ही होती है। _ इन सभी की चर्या मुनिराजों की अपेक्षा कुछ ही कम होने के कारण इन्हें उपचार से महाव्रती कहने पर भी प्रत्याख्यानावरण कषाय विद्यमान होने से इनके पंचमगुणस्थान ही है। ये गृहविरत होने पर भी उत्कृष्ट श्रावक-श्राविका ही हैं; छठवें
आदि गुणस्थानवर्ती मुनि नहीं हैं; अतः इनके प्रति विनय-व्यवहार मुनिराजों के समान नहीं होता है। इनकी अष्ट द्रव्य से पूजन नहीं होती है, इन्हें साष्टांग नमस्कार भी नहीं किया जाता है, मात्र इच्छाकार आदि किया जाता है। . इसप्रकार उद्दिष्ट त्याग प्रतिमाधारी ये सर्वोत्कृष्ट श्रावक, शेष श्रावकों के
पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं /76