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"जो नव बाड़ि सहित विधि साधे, निशदिन ब्रम्हचर्य आराधै।
सो सप्तम प्रतिमा धर ज्ञाता, शील शिरोमणि जग विख्याता।।
जो नवबाड़ सहित विधि पूर्वक, दिन-रात ब्रम्हचर्य की आराधना करता है, वह जगत विख्यात, शील शिरोमणि ज्ञाता जीव सप्तम प्रतिमाधारी है।" .
धान्यमय फसल की सुरक्षा के लिए खेत में सब ओर लगाए जानेवाले कटीले तार आदि को बाड़ कहते हैं; इससे पशु, शत्रु आदि से खेत सुरक्षित हो जाता है। निम्नलिखित नव सावधानिआँ आत्मारूपी खेत में उत्पन्न हुए अतीन्द्रिय आनन्दमय ब्रम्हचर्य रूपी फसल को सुरक्षित रखतीं हैं; अतः उन्हें नवंबाड़ कहते हैं। वे इसप्रकार हैं -
1. स्त्रिओं के समागम में नहीं रहना। 2. उन्हें राग/विकार दृष्टि से नहीं देखना। 5. उनसे परोक्ष में विकारमय संभाषण, पत्राचार आदि नहीं करना । . 4. पूर्व में भोगे हुए भोगों का स्मरण नहीं करना । 5. कामोत्पादक गरिष्ठ भोजन नहीं करना। 6. कामोत्पादक साज-श्रृंगार आदि नहीं करना । 7. स्त्रिओं के आसन, पलंग, बिस्तर आदि पर नहीं बैठना, नहीं सोना । 8. कामोत्पादक कथा, गीत आदि नहीं सुनना। 9. भूख से कुछ कम भोजन करना । महिला को ये सभी पुरुषों के संबंध में समझ लेना चाहिए।
आचार्य समन्तभद्रस्वामी रत्नकरण्ड श्रावकाचार के 143वें श्लोक द्वारा इसे इसप्रकार स्पष्ट करते हैं -
“मलबीजं मलयोनि, गलन्मलं पूतगन्धि बीभत्सं।
पश्यन्नङ्गमनङ्गाद् विरमति यो ब्रम्हचारी सः।। जो इस शरीर को मलरूपी बीज से उत्पन्न हुआ, मल को ही उत्पन्न करनेवाला, मल को ही बहानेवाला, महादुर्गन्धमय और घृणा के स्थान रूप में देखता हुआ अनंग/विषय-विकार से विरक्त हो जाता है, वह ब्रम्हचारी है।"
निष्कर्ष यह है कि स्वरूप-स्थिरता से व्यक्त वीतरागतामय अतीन्द्रिय आनन्द के बल पर विषय-विकारों से निवृत्त हो जाना ब्रम्हचर्य प्रतिमा है। यह जीव गृहस्थी में रहता हुआ परिस्थितिवश भूमिकानुसार आजीविका आदि गृहकार्य
पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं /70