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________________ महिलाओं का भी इसीप्रकार से समझ लेना चाहिए। आचार्य कुन्दकुन्ददेव, आचार्य समन्तभद्रस्वामी आदि ने इस प्रतिमा को रात्रिभुक्ति त्याग नाम दिया है। इसका स्वरूप बताते हुए रत्नकरण्ड श्रावकाचार के 142वें श्लोक में आचार्य समन्तभद्रस्वामी लिखते हैं - “अन्नं पानं खाद्यं लेह्यं नाश्नाति यो विभावर्याम् । ___स च रात्रिभुक्तिविरतः, सत्त्वेष्वनुकम्पमानमनः।। प्राणिओं पर अनुकम्पारूप परिणाम को धारण करनेवाला जो पुरुष रात्रि में अन्न, पान, खाद्य, लेह्य आदि का भक्षण नहीं करता है; वह रात्रि भुक्तिविरत श्रावक है।" __ यद्यपि सम्यग्दर्शन से पूर्व विशुद्धि लब्धि या अष्ट मूलगुणों के पालन में रात्रिभोजन का त्याग हो गया था; परन्तु वह स्थूल रूप में तथा अतिचार सहित था। तदनन्तर पहली दार्शनिक प्रतिमा में स्व संबंधी रात्रि भोजन का त्याग निरतिचाररूप में भी हो गया था; परन्तु नव कोटि से त्याग नहीं होने के कारण अन्य संबंधी रात्रि भोजन के पाप का भागी किसी न किसी रूप में हो रहा था। अब वीतरागता विशेष बढ़ जाने के कारण इस छठवीं प्रतिमा में वह रात्रि भोजन का पूर्णतया नव-नव कोटी से त्यागी हो गया है। अब उसके जीवन में किसी भी प्रकार का रात्रिभोजन संबंधी अशुभभाव विद्यमान नहीं है; अतः इसे रात्रिभुक्तिविरति कहते हैं। ... इसमें जो स्वरूप स्थिरतारूप वास्तविक धर्म है, वह तो निश्चय छठवीं प्रतिमा है तथा दिवा मैथुन या रात्रिभुक्ति के त्यागरूप शुभभाव और तदनुकूल प्रवृत्तिआँ उसके सहचारी और निमित्त होने के कारण उपचार से व्यवहार प्रतिमा कहलाती हैं। प्रश्न 13: ब्रम्हचर्य प्रतिमा का स्वरूप स्पष्ट कीजिए। . उत्तरः दर्शनमोहनीय, अनन्तानुबंधी और अप्रत्याख्यानावरण संबंधी विकृतिओं के अभाव पूर्वक प्रगट हुए सम्यक् रत्नत्रयसम्पन्न देशसंयमी,जीव के प्रत्याख्यानावरण संबंधी विकृतिओं की विशिष्ट मंदता हो जाने से संसार, शरीर और भोगों संबंधी विशिष्ट अनासक्ति भाव व्यक्त हो जाने के कारण, मैथुनरूप अशुभभाव पूर्णतया नष्ट होकर, स्त्री मात्र से उदासीन हो, आत्मस्वरूप में रमणतारूप ब्रम्हचर्यभाव व्यक्त हो जाता है; यह ब्रम्हचर्य नामक सातवीं प्रतिमा है। कविवर पं. बनारसीदासजी वहीं, छंद 66 में इसे इसप्रकार स्पष्ट करते हैं - तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /69
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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