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________________ सामायिक कहाँ करें ? कैसे करें ? सामायिक में क्या करें ? उससे लाभ क्या है ? इत्यादि विंदुओं पर आचार्य समन्तभद्रस्वामी ने रत्नकरण्डश्रावकाचार में 97 से 104 पर्यंत 8 श्लोकों द्वारा विस्तृत मीमांसा की है। अन्यत्र अन्यान्य ग्रंथों में भी इनका विस्तार से वर्णन किया गया है; जिसका संक्षिप्त सार इसप्रकार है - द्रव्य सामायिक की विधि - सामायिक करने का इच्छुक जीव अपने शरीर की यथायोग्य शुद्धि कर; जीव-जन्तु रहित, कोलाहल रहित, निरापद सामायिक के योग्य स्थान को देखकर, उस विशिष्ट स्थान पर शुद्ध-स्वच्छ चटाई, चौकी या शिला आदि का परिमार्जन कर, उस पर स्थित हो; समयानुसार सामायिक, आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान आदि पाठ पढ़कर; अपनी शक्ति के अनुसार कम से कम दो घड़ी, मध्यम चार घड़ी, उत्कृष्ट छह घड़ी पर्यंत द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की सीमा का संकल्पकर, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुखकर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ा हो जाए। मन-वचन-काय के व्यापार को शुद्ध करते हुए, आरम्भ-परिग्रह की चिंता से मुक्त हो, सर्वप्रथम हाथ जोड़कर शांत भाव से अत्यंत मंद स्वर तथा स्पष्ट शब्दों में सामायिक दण्डक का पाठकर, तीन आवर्त पूर्वक (मुकुलित हाथों को अंजुलि जोड़कर दाहिने से बाँए ओर घुमाते हुए) परोक्ष रूप में समस्त पंच परमेष्ठिओं, कृत्रिम और अकृत्रिम जिनबिम्बों-जिनालयों, जिनवाणी और जिनधर्ममय नौ जिन देवताओं को नमस्कार करे। तत्पश्चात् अपने दाहिने हाथ की ओर से घूमते हुए इसी विधि पूर्वक अन्य दिशाओं में स्थित नव देवताओं को नमस्कार करे (यदि पूर्व दिशा की ओर मुखकर खड़ा हुआ हो तो दक्षिण, पश्चिम, उत्तर – इस क्रम से तथा उत्तर दिशा की अपेक्षा पूर्व, दक्षिण, पश्चिम – इस क्रम से पूर्वोक्त विधि सम्पन्न करे)। तदनन्तर उसी विवक्षित दिशा की ओर मुखकर अपनी शक्ति-अनुसार खडगासन या पद्मासन मुद्रा को धारणकर, मौनपूर्वक उपसर्ग-परिषह आदि स्थिति में भी अपनी समय-सीमा पर्यन्त समस्त सावध योगों का त्यागकर, समताभाव पूर्वक पूर्णतया निश्चल रहे । __ भाव सामायिक की विधि - इस समय तत्त्व-विचार पूर्वक स्व-पर का भेदविज्ञान करते हुए आत्मामय रहने का, सहज ज्ञाता-दृष्टा रहने का, निर्विकल्प रहने का प्रयास करे । इसमें मन नहीं लगने पर पंच परमेष्ठिओं के स्वरूप का विचार करे । संसार और मोक्ष के स्वरूए का विचार करते हुए, अपने परिणामों तथा उनके तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /61 .
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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