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अमूर्तिक कहलाता है। जीव में स्पर्श आदि नहीं होने से वह अमूर्तिक है। उसमें अमूर्तिकपना स्वभाव से ही सदा विद्यमान है; अतः यह लक्षण असम्भव दोष से दूषित नहीं है।
अमूर्तिकपना सभी जीवों का सामान्य गुण है । वह संसारी, सिद्ध, सूक्ष्म, बादर आदि सभी जीवों में पाया जाता है; अर्थात् यह लक्षण लक्ष्यभूत सभी जीवों में विद्यमान है, इसलिए अव्याप्ति दोष से भी दूषित नहीं है।
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परंतु अमूर्तिकपना पुद्गल को छोड़कर शेष सभी द्रव्यों का सामान्यगुण होने से वह जीव के साथ ही धर्म, अधर्म, आकाश, काल - इन चार द्रव्यों में भी पाया जाता है। इसप्रकार यह लक्षण लक्ष्यभूत जीव में तथा अलक्ष्यभूत धर्म आदि द्रव्यों में भी विद्यमान है; अतः अतिव्याप्ति दोष से दूषित है।
इसप्रकार जो अमूर्तिक हो, उसे जीव कहते हैं - इस कथन में असम्भव और अव्याप्ति दोष नहीं होने पर भी अतिव्याप्ति दोष विद्यमान होने से, अमूर्तिक लक्षण लक्षणाभास है/सदोष लक्षण है, यथार्थ लक्षण नहीं है । इस लक्षण के द्वारा सभी द्रव्यों से जीव को पृथक् नहीं कर सकते हैं । इस लक्षण से जीव की पहिचान करने पर पुद्गल तो जीव नहीं कहलाएगा; परंतु धर्म आदि चार द्रव्यों को जीव कहना पड़ेगा, जो कि यथार्थ नहीं है; अतः यह लक्षण नहीं, लक्षणाभास है । उपयोग ही
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जीव का निर्दोष लक्षण है ।
प्रश्न 9ः गाय को पशु कहते हैं तथा पशु को गाय कहते हैं - इन दो कथनों
की परीक्षा कीजिए ।
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उत्तरः गाय को पशु कहते हैं इस कथन में गाय लक्षण और पशु लक्ष्य है। गाय रूप लक्षण पशु रूप लक्ष्य में रहता है, इसलिए असम्भव दोष इसमें नहीं है । गायरूप लक्षण पशुरूप लक्ष्य में ही रहता है, मनुष्य आदि रूप अलक्ष्य में नहीं रहता है; अतः यह अतिव्याप्ति दोषवाला भी नहीं है; परंतु गायरूप लक्षण पशुरूप सम्पूर्ण लक्ष्य में नहीं रहता है; हाथी, घोड़े आदि पशु हैं, पर वे गाय नहीं हैं । यह लक्षण मात्र गायरूप पशु में हीं रहता है । इसप्रकार इसकी लक्ष्य के एकदेश में वृत्ति होने से यह लक्षण अव्याप्ति दोष से दूषित है अर्थात् पशु का लक्षण गाय बनाना, अव्याप्त लक्षणाभास है, वास्तविक लक्षण नहीं है ।
पशु को गाय कहते हैं – इस कथन में पशु लक्षण है और गाय लक्ष्य हैं । पशु
क्षण और लक्षण /44