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यह लक्षण लक्ष्यभूत वस्तु से पृथक् होने के कारण असंयोगी वस्तु का ज्ञान कराने में समर्थ नहीं है; मात्र तात्कालिक संयोगी वस्तु का ज्ञान कराता है; इसप्रकार यह लक्षण समय, परिस्थिति आदि की अपेक्षा रखता है। .
इसप्रकार लक्षण के आत्मभूत और अनात्मभूत – ये दो भेद होते हैं। प्रश्न 5: आत्मभूत और अनात्मभूत लक्षण का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः यद्यपि ये दोनों लक्षण के ही भेद हैं; तथापि इन दोनों में पारस्परिक अन्तर है। जो इसप्रकार है -
__ आत्मभूत लक्षण
'अनात्मभूत लक्षण 1. यह वस्तु के साथ एकमेक होता है। | यह वस्तु के साथ एकमेक नहीं होता है। 2. यह वस्तु का वास्तविक स्वरूप होने | यह संयोग की अपेक्षा वस्तु का ज्ञान से यथार्थ लक्षण है। करानेवाला होने से तथा संयोग औपचारिक
होने से यह औपचारिक लक्षण है। 3. यह त्रैकालिक लक्षण है। यह तात्कालिक लक्षण है। . 4. यह सर्वत्र पाया जाता है। यह सर्वत्र नहीं पाया जाता है। 5. त्रैकालिक असंयोगी वस्तु का ज्ञान त्रैकालिक असंयोगी वस्तु का ज्ञान इस ___ मात्र इसी लक्षण से होता है। लक्षण द्वारा होना कभी भी सम्भव
नहीं है।
.. 6. वस्तु-स्वरूप का यथार्थ निर्णय इससे | इससे वैसा निर्णय नहीं हो सकता है। ___ ही होता है। 7. मोक्षमार्ग का मूलाधार स्व-पर | इसके बल पर वास्तविक भेदविज्ञान नहीं
भेदविज्ञान इसी से होता है। हो पाता है। 8. इस लक्षण को यथार्थ नहीं समझने | प्रायः इस लक्षण में वे दोष नहीं गिने पर इसमें लक्षणाभासरूप अव्याप्ति | जाते हैं ।
आदि दोष आ जाते हैं। 9. इस लक्षण से ही वस्तु की परीक्षा की. इससे वस्तु की परीक्षा नहीं की जाती
जाती है। इत्यादि अनेकों प्रकार से इन दोनों लक्षणों में अन्तर है।
लक्षण और लक्षणाभास /40