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पाठ 3
| लक्षण और लक्षणाभास
— प्रश्न 1: अभिनव धर्मभूषण यति के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तरःजैन न्याय की अमर रचना एकमात्र न्यायदीपिका को रचकर जैन न्याय वाङ्मय के क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान बनानेवाले अभिनव धर्मभूषण यति ने संभवतया कर्नाटक देश के विजयनगर स्थान को अपने जन्म, साधना और समाधि से गौरवान्वित किया है। आप शक संवत् 1280 से 1418 के आसपास उस प्रांत को अंलकृत कर रहे थे। इसप्रकार अनेकानेक ऐतिहासिक शिलालेखों आदि के आधार पर आपका समय ईसा की चौदहवीं शदी के उत्तरार्ध से ईसा की पंद्रहवीं शदी के पूर्वार्ध पर्यंत माना गया है। __ आपके प्रभाव और व्यक्तित्व के सूचक उल्लेखों से ज्ञात होता है कि आप अपने समय के बड़े ही प्रभावक और विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी जैन गुरु रहे हैं। राजाधिराज परमेश्वर की उपाधि से विभूषित प्रथम देवराय आपके चरणों में अपना शिर झुकाया करते थे। आपने विजयनगर के राजघराने में जैनधर्म की सातिशय प्रभावना की है। ___ जैन साहित्य में धर्मभूषण नाम के अनेक साहित्यकार हुए हैं। उन सबसे पृथक् करने के लिए आप अपने नाम के आगे ‘अभिनव' शब्द और अंत में ‘यति' शब्द लगाया करते थे। कुंदकुंद आम्नायी आपके गुरु का नाम वर्धमान था । यद्यपि आप दिगंबर जैन मुनि थे; तथापि विजयनगर के भट्टारकीय पट्ट पर आसीन होने से
आप ‘भट्टारक' नाम से विश्रुत हुए। ___ जैनधर्म की प्रभावना करना तो आपके जीवन का व्रत था ही; ग्रंथ रचना के कार्य में भी आपने अपनी अद्भुत सूझबूझ, तार्किक शक्ति और विद्वत्ता का सुंदरतम ढंग से पूरा-पूरा उपयोग किया है। आज हमें आपकी एकमात्र अमर रचना 'न्यायदीपिका' ही प्राप्त है। यद्यपि अधिकांशतया न्याय ग्रंथों की भाषा दुरूह और अति गंभीर होती है; तथापि प्रस्तुत न्यायदीपिका ग्रंथ की भाषा अत्यंत सुबोध और
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