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________________ इन सभी समस्याओं, तत्त्व संबंधी विपरीतताओं से बचने का उपाय मात्र एक ही है कि पुण्य को मुक्ति का कारण नहीं मानें; एकमात्र वीतरागता को ही मुक्ति का कारण मानें। जहाँ कहीं जिनागम में पुण्य को मुक्ति का कारण लिखा है, उसे पूर्णतया औपचारिक व्यवहारनय का कथन समझना ही, इन समस्याओं से छूटने का एकमात्र उपाय है। प्रश्न 10. स्वर्ग और मोक्ष में कारण और स्वरूप की अपेक्षा भेद बताइए। उत्तर : स्वर्ग और मोक्ष में कारण और स्वरूप की अपेक्षा अत्यधिक भेद/अंतर है। वह इसप्रकार - स्वर्ग (कारण की अपेक्षा अन्तर) मोक्ष 1. इसका कारण प्रशस्त राग है। इसका कारण वीतरागभाव है। 2. इसका कारण अपराध है। इसका कारण निरपराधता है। 3. शुभभावरूप कारणों में परस्पर | इसका कारण त्रिकाल एकरूप है। विविधता है। 4. इसका कारण परलक्षी परिणामरूप | इसका कारण स्वलक्षी परिणामरूप अशुद्धोपयोग है। शुद्धोपयोग है। 5. विराधक या साधक दशा इसकी | इसकी कारण साध्य दशा है। कारण है। 6. निमित्तरूप में इसका कारण पूर्वबद्ध | निमित्तरूप में इसका कारण कर्म का कर्म का उदय है। क्षय है। 7. विशिष्ट गति या विशिष्ट संयोग भी | कोई गति या संयोग इसका नियामक इसके नियामक कारण हैं। जैसे | कारण नहीं है। एकमात्र सम्यक्रत्नत्रय भोगभूमि का जीव मरकर नियम से | की परिपूर्णता ही नियामक कारण है। स्वर्ग (देवगति) प्राप्त करता है, तीर्थंकर की माता नियम से स्वर्ग प्राप्त करती है इत्यादि। इत्यादि अनेक प्रकार से कारण की अपेक्षा इन दोनों में अन्तर है। सात तत्त्वों सम्बन्धी भूल /34
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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