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________________ रूढ़ीवाद, आर्थिक जीवन में विषमता, सामाजिक जीवन में आडम्बर इत्यादि सभी कुछ अपनी चरम सीमा पर था। इन सबसे पण्डितजी को संघर्ष करना था। जो उन्होंने डटकर किया, प्राणों की बाजी लगाकर भी किया। ___पं. टोडरमलजी गंभीर प्रकृति के आध्यात्मिक सत्पुरुष थे। वे स्वभाव के सरल, संसार से उदास, धुन के धनी, निरभिमानी, विवेकी, अध्ययनशील, प्रतिभावान, बाह्याडंबर विरोधी, दृढ़ श्रद्धानी, क्रांतिकारी, सिद्धांतों की कीमत पर कभी नहीं झुकनेवाले, आत्मानुभवी, लोकप्रिय प्रवचनकार, सिद्धांत ग्रंथों के सफल टीकाकार, परोपकारी, प्रामाणिक महामानव थे। । आपने अपने जीवन में छोटी-बड़ी बारह रचनाएँ रची हैं। जो लगभग एक लाख श्लोक प्रमाण और पाँच हजार पृष्ठों के आसपास हैं। इनमें से कुछ मौलिक और कुछ भाषा टीकारूप हैं । मौलिक रचनाओं में मोक्षमार्ग प्रकाशक, रहस्यपूर्ण चिट्ठी, गोम्मटसार पूजन और समवसरण रचना वर्णन – ये चार सर्वमान्य हैं। टीका रचनाओं में पुरुषार्थसिद्धिउपाय भाषा टीका, आत्मानुशासन भाषा टीका, त्रिलोकसार भाषा टीका तथा सम्यग्ज्ञानचंद्रिका भाषा टीका प्रसिद्ध हैं। सम्यग्ज्ञानचंद्रिका गोम्मटसार जीवकाण्ड-कर्मकाण्ड, लब्धिसार, क्षपणासार भाषा टीका और अर्थसंदृष्टि अधिकार का संग्रह है। इसप्रकार आपकी कृतिआँ गद्य-पद्य दोनों ही शैलिओं में उपलब्ध हैं। इनका कालक्रमानुसार विभाजन इसप्रकार है - क्रम कृतिआँ समय विक्रम संवत् में 1. रहस्यपूर्ण चिट्ठी वि. सं. 1811 - . गोम्मटसार जीवकाण्ड भाषा टीका 5 गोम्मटसार कर्मकाण्ड भाषा टीका । वि. सं. 1818 अर्थसंदृष्टि अधिकार लब्धिसार भाषा टीका . क्षपणासार भाषा टीका गोम्मटसार पूजन त्रिलोकसार भाषा टीका 9. समवसरण रचना वर्णन 10. मोक्षमार्ग प्रकाशक (अपूर्ण) सात तत्त्वों सम्बन्धी भूल /16 . क्रम सम्यग्ज्ञान चंद्रिका
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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