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________________ . पाठ 2 सात तत्त्वों संबंधी भूलें प्रश्न 1: आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी का व्यक्तित्व और कर्तृत्व लिखिए । उत्तरः आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी राजस्थान प्रान्त के जैनिओं की काशीरूप में प्रसिद्ध जयपुर नगर के लब्धप्रतिष्ठित विद्वानों में से एक हैं। आपका अधिकांश जीवन राजस्थान की राजधानी जयपुर में ही व्यतीत हुआ था; तथापि कुछ समय आपको आजीविका के लिए सिंघाणा में भी रहना पड़ा था। वहाँ आप दिल्ली के एक साहूकार के यहाँ कार्य करते थे । सरस्वती माँ के वरद पुत्ररूप आपका काल अठारहवीं सदी माना जाता है । आपने लगभग विक्रम संवत् 1776-77 के आसपास मनुष्य पर्याय को धारण किया था तथा विक्रम संवत् 1823-24 के आसपास उसे छोड़ दिया था। आपके पिता का नाम जोगीदास और माता का नाम रंभा देवी था । आपके हरिश्चन्द्र और गुमानीराम नामक दो पुत्र थे। गुमानीराम तो आपके समान ही विचक्षण बुद्धि के धनी, क्रांतिकारी सुपुत्र थे । उनके नाम से गुमानीपंथ नामक शैली भी प्रचलित रही है । खण्डेलवाल जाति के गोदिका गोत्र के नररत्न पं. टोडरमलजी की सामान्य शिक्षा एक आध्यात्मिक तेरा-पंथ-शैली में हुई थी । अगाध विद्वत्ता तो आपने अपने कठोर श्रम और प्रतिभा के बल पर ही प्रगट की थी; बाद में उसे आपने सहृदयता से अन्य लोगों में वितरित भी किया है । आप प्रतिभा संपन्न, मेधावी और अध्ययनशील व्यक्तित्व के धनी थे । प्राकृत, संस्कृत और हिन्दी के अतिरिक्त आपको कन्नड़ भाषा का भी ज्ञान था । वि. सं. 1821 की इंद्रध्वज विधान महोत्सव पत्रिका में आपके संबंध में ब्र. रायमलजी लिखते हैं- "ऐसे महंत बुद्धि के धारक पुरुष इस काल विषै होना दुर्लभ हैं; तातैं यायूँ मिलै सर्व संदेह दूर होय हैं। " आपका जीवनकाल भारत के संक्रांति कालीन युग का काल था। उस समय राजनीति में अस्थिरता, सम्प्रदायों में तनाव, साहित्य में शृंगार, धार्मिक क्षेत्र में तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक / 15
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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