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द्वादशांग वाणी का / दिव्यध्वनि का एकमात्र सार है । इस समयसार के सिवाय शेष सभी असार है/निःसार/व्यर्थ है । मैं भी स्वभाव से आपके ही समान समयसार स्वरूप शुद्धात्मा हूँ। इसके आश्रय से मेरी परिणति भी आपके ही समान समयसारमय हो जाए। हे प्रभो ! मेरी एकमात्र यही इच्छा है तथा इसी मार्ग पर चल रहा हूँ, जिससे मेरा जीवन भी समयसारमय हो जाए ।
समयसार है सार, और सार कुछ है नहीं ।
महिमा अपरम्पार, समयसारमय आपकी । । 12 ।।
वास्तव में एकमात्र समयसार स्वरूप शुद्धात्मा ही सार है, सम्पूर्ण दिव्यध्वनि का प्रतिपाद्य है । इसके अतिरिक्त अन्य कुछ भी सारभूत नहीं है। हे समयसारमय सीमंधर भगवान ! आपकी महिमा अपरंपार /अनंत/असीम है। मैं उसे कहने में समर्थ नहीं हूँ; अतः मैं तो मात्र अपने परिणामों की पवित्रता के लिए आपकी पूजन कर रहा हूँ ।
इन्द्रियजनित सुख की इच्छा करना और दुःख से डरना भ्रम है
जो अरहंतादि के प्रति स्तवनादिरूप विशुद्ध परिणाम होते हैं, उनसे अघातिया कर्मों की साता आदि पुण्य प्रकृतियों का बंध होता है और यदि वे परिणाम तीव्र हों तो पूर्वकाल में जो असाता आदि पाप प्रकृतियों का बंध हुआ था, उन्हें भी मंद करता है अथवा नष्ट करके पुण्य प्रकृतिरूप परिणमित करता है और उस पुण्य का उदय होने पर स्वयमेव इन्द्रियसुख की कारणभूत सामग्री प्राप्त होती है तथा पाप का उदय होने पर स्वयमेव दुःख की कारणभूत सामग्री दूर हो जाती है। इसप्रकार इस प्रयोजन की भी सिद्धि उनके द्वारा होती है अथवा जिनशासन के भक्त देवादिक हैं, वे उस भक्त पुरुष को अनेक इन्द्रियसुख की कारणभूत सामग्रियों का संयोग कराते हैं और दुःख की कारणभूत सामग्रियों को दूर करते हैं । - इसप्रकार भी इस प्रयोजन की सिद्धि उन अरहंतादिक द्वारा होती है; परन्तु इस प्रयोजन से कुछ भी अपना हित . नहीं होता; क्योंकि यह आत्मा कषाय भावों से बाह्य सामग्रियों में इष्ट-अनिष्टपना मानकर स्वयं ही सुख-दुःख की कल्पना करता है । कषाय के बिना वह सामग्री कुछ सुख-दुःख की दाता नहीं है तथा कषाय है सो सर्व आकुलतामय है; इसलिए इन्द्रियजनित सुख की इच्छा करना और दुःख से डरना - यह भ्रम है । मोक्षमार्गप्रकाशक, पहला अधिकार, पृष्ठ-७
सीमंधर पूजन / 14