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________________ भवन प्राप्त कर लिया है । जिसमें समस्त शक्तिओं के पुष्प विकसित हो गए हैं / भूखप्यास आदि अठारह दोष नष्ट होकर आपके अंदर केवलज्ञान रूपी प्रदीप प्रज्वलित हो उठा है/आप पूर्ण वीतरागी, सर्वज्ञ, सयोगकेवली अरहंत भगवान हो गए हैं । तत्पश्चात् योगों की चंचलता भी नष्ट होने लगी है, शुक्लध्यानरूपी अग्नि में कर्मरूपी ईंधन जलकर भस्म होने लगा है / आप क्रमशः योग निरोध के बाद अयोगकेवली अरहंत हो गए हैं । जिसका फल ऐसा अद्वितीय आकर्षक हुआ कि आप अत्यंत धवल, कर्म कालिमा से रहित, अपने स्वरूप में परिपूर्ण लीन, स्वस्थ सिद्ध भगवान हो गए हैं। आपने अपनी समग्र साधना का सर्वोत्कृष्ट फल सिद्ध पद प्राप्त कर लिया है। इसप्रकार इस छंद में मोक्षमार्ग से लेकर मोक्ष पाने पर्यंत की परिपूर्ण प्रक्रिया का/ 'भगवान बनने की विधि का वर्णन आठ द्रव्यों के रूप में किया गया है । जिसका संक्षिप्त सार इसप्रकार है - भगवान बनने की इच्छा रखनेवाला जीव सबसे पहले सच्चे देव-शास्त्र-गुरु के माध्यम से ज्ञानानंद स्वभावी अपने भगवान आत्मा को अपनत्वरूप से जानकर, पहिचानकर, उसमें विशेष लीन होता है / सम्यग्दर्शन - सम्यग्ज्ञान पूर्वक विशिष्ट सम्यक्चारित्रमय मुनिदशा प्रगट करता है। इसके बाद जब वह अपने भगवान आत्मा में और भी अधिक तीव्र अंतरोन्मुखी पुरुषार्थ पूर्वक विशेष स्थिर होने लगता है, तब क्षपकश्रेणी का आरोहण कर बारहवें गुणस्थान में पूर्ण निष्कषायी, वीतरागी हो जाता है। इसके बाद वही जीव घातिकर्मों का पूर्ण अभाव होने पर केवलज्ञान आदि अनंतचतुष्टय सम्पन्न तेरहवें गुणस्थानवर्ती सयोग केवली अरहंत हो जाता है। आयु के अंत में मन, वचन, काय संबंधी योगों की चंचलता का नाशकर वही जीव चौदहवें गुणस्थान में अयोगकेवली अरहंत बन जाता है । तत्पश्चात् अत्यंत अल्पकाल में शेष रहे अघाति कर्म तथा शरीर आदि नोकर्मों का भी अभाव हो जाने पर वह जीव सादि अनंतकाल पर्यंत के लिए परिपूर्ण शुद्ध, अव्याबाध सुखमय सिद्ध भगवान हो जाता है। निष्कर्ष यह है कि संसारी से सिद्ध बनने का उपाय एक मात्र अपने ज्ञानानंद स्वभावी भगवान आत्मा को अपनत्वरूप से जानकर, पहिचानकर, उसमें ही स्थिर रहना है; अन्य कुछ भी नहीं है । जयमालाः सीमंधर भगवान - पूजन की जयमाला के प्रारम्भिक छंदों में सीमंधर तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक / 11
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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