________________ आत्म भावना (चाल - मैं ज्ञानानन्द स्वभावी हूँ।) नित मंगलमय चिद्धारा हूँ ! निःज्ञान की केवल धारा हूँ !! नित दर्श-ज्ञान उजियारा हूँ ! मैं ज्ञान की अविरल धारा हूँ !! मैं ज्ञानमात्र उपयोगमयी, मति श्रुत अवधि का घाट नहीं। कर्मों से नित निरपेक्षमयी, मनपर्यय केवलज्ञान नहीं।। पाँचों ज्ञानों के घाटों पर, निज से नित बहने वाला हूँ। हूँ सदा पारिणामिक स्वभाव, धारा सम बहने वाला हूँ।। औदयिक मिश्र उपशम क्षायिक, ये मेरे नित्य स्वभाव नहीं। ये घाट, ज्ञानमय धारा मैं, घाटों बिन दिखता कभी नहीं।। घाटों के कारण मम धारा, घटती-बढ़ती भी कभी नहीं। मैं गुण अनन्त से सदा पूर्ण, परमय भी होता कभी नहीं। मैं सहज शुद्ध ध्रुव एक सुखद, नित प्रभु स्वयंभू धारा हूँ। शम-दम से होता सहज लब्ध, नित मंगलमय चिद्धारा हूँ। नित मंगलमय चिद्धारा हूँ। निःकेवल ज्ञान की धारा हूँ!!! // सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः॥ जैनम् जयतु शासनम् .