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________________ मालवा में राष्ट्रकूट नरेशों का प्रभुत्व स्थापित होने पर बदनावर में जैनपीठ की स्थापना हुई हो। आचार्य जिनसेन ने ग्रंथ रचना का काल स्वयं निर्दिष्ट किया होने से आपके स्थिति-समय के संबंध में मतभेद की संभावना नहीं है। शक संवत् 705 तदनुसार विक्रम संवत् 840, ई. सन् 783 में हरिवंशपुराण की रचना पूर्ण हुई होने से आपका समय लगभग ई. सन् 748-818 सिद्ध होता है। आप महापुराण के कर्ता जिनसेनाचार्य से पूर्ववर्ती होने के कारण जिनसेन प्रथम नाम से प्रसिद्ध हैं। ___ पुराणग्रंथों में पद्मपुराण के बाद सर्वाधिक पढ़ा जानेवाला हरिवंशपुराण ही आपकी अक्षय कीर्ति के लिए एकमात्र उपलब्ध कृति है। छ्याषठ सर्ग और बारह हजार श्लोकों में निबद्ध इसमें बाईसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का चरित्र विशद रूप से वर्णित है। प्रसंगवश नारायण श्रीकृष्ण, बलभद्र पदधारी बलदेव/बलराम, कौरव, पाण्डव आदि इतिहास-प्रसिद्ध अनेक महापुरुषों के चरित्र भी इसमें अति सुन्दरतम रूप में निबद्ध हैं। प्रथमानुयोग की शैली में निबद्ध यह ग्रंथ वास्तव में ज्ञानकोष है। इसमें कर्म सिद्धान्त, आचारशास्त्र, तत्त्वज्ञान एवं आत्मानुभूति संबंधी विशद चर्चाएं चर्चित हैं। साहित्यिक सुषमा से समृद्ध यह ग्रंथ उच्चकोटि का महाकाव्य भी है। मणि-कांचन संयोग के समान इसमें मार्गदर्शक सूक्तिआँ भी निहित हैं। पुराणग्रंथ होने से अपने पूर्ववर्ती पुराणकारों-पुराणों/रविषेणाचार्य के पद्मपुराण और जटासिंहनन्दि के वरांगचरित्र का तो इस पर प्रभाव है ही; इसके साथ ही इसका लोक विभाग और शलाका पुरुषों का वर्णन तिलोयपण्णत्ति से प्रभावित है; द्वादशांग वर्णन तत्त्वार्थवार्तिक के अनुरूप है; तत्त्व-प्रतिपादन तत्त्वार्थ सूत्र और सर्वार्थसिद्धि को आधार मानकर किया गया है; संगीत का वर्णन भरत मुनि के नाट्य शास्त्र से अनुप्राणित है – इसप्रकार इस पर पूर्वाचार्यों का प्रभाव पूर्णतया परिलक्षित होता है। जयपुर के सुप्रसिद्ध विद्वान पण्डित दौलतरामजी कासलीवाल ने इस पर एक भाषा टीका लिखी है। नेमिनाथ भगवान के पावन जीवन का वर्णन कर यह पुराणग्रंथ मानव जीवन के समक्ष कर्तव्य और आदर्श की स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत करता है; अतः हमें गहराई से इसका स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। पाँच पाण्डव /126
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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