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________________ पाठ 8 पाँच पाण्डव प्रश्न 1: आचार्य जिनसेन का व्यक्तित्व-कर्तृत्व लिखिए। उत्तरः अपनी वर्णन क्षमता और काव्य प्रतिभा की अपूर्वता के कारण आचार्य जिनसेन प्रबुद्धाचार्यों की श्रेणी में अग्रगण्य हैं। आप पुन्नाट संघ के आचार्य हैं। पुन्नाट कर्नाटक का प्राचीन नाम है। आचार्य हरिषेण की कृति कथाकोष के अनुसार भद्रबाहु स्वामी के आदेशानुसार उनका संघ चंद्रगुप्त या विशाखाचार्य के साथ दक्षिणापथ के पुन्नाट देश में गया था; अतः इस देश के मुनिसंघ का नाम पुन्नाटसंघ पड़ गया। आपके गुरु का नाम कीर्तिषेण था। आपने अपनी कृति हरिवंशपुराण में अन्तिम तीर्थनायक वर्धमान स्वामी के निर्वाण के बाद 683 वर्ष के अनन्तर अपने गुरु कीर्तिषेण पर्यन्त अपनी अविच्छिन्न गुरु परम्परा का उल्लेख किया है। आज आपकी एकमात्र रचना हरिवंशपुराण ही जन-जन के मानस पटल पर व्याप्त है। इसके रचना-स्थान का निर्देश करते हुए आपने स्वयं इसी कृति में लिखा है कि शक संवत् 705 (ई. सन् 783) में जिस समय उत्तर दिशा की इन्द्रायुध, दक्षिण दिशा की कृष्ण-पुत्र श्रीवल्लभ, पूर्व की अवन्तिनृपति वत्सराज और पश्चिम/सौरों के अंधिमंडल सौराष्ट्र की वीर जय वराह रक्षा कर रहे थे; उस समय लक्ष्मी से समृद्ध वर्धमानपुर के नन्नराजवसति नाम से प्रसिद्ध पार्श्व जिनालय में इस ग्रंथ का प्रणयन प्रारम्भ हुआ और दोस्तटिका के शान्ति जिनालय में इसकी पूर्णता हुई। सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ डॉ. ए. एन. उपाध्ये के मतानुसार यह वर्धमानपुर काठियावाड़ का वर्तमान वढ़वान है; परन्तु डॉ. हीरालालजैन के मतानुसार मध्यप्रदेश के धार जिले का बदनावर स्थान ही वर्धमानपुर है। अपने मत की पुष्टि के लिए वे लिखते हैं कि इस बदनावर में प्राचीन जैन मंदिरों के भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं; यहाँ से दुतरिया/प्राचीन दोस्तटिका नामक ग्राम भी समीप है तथा हरिवंशपुराण में वर्णित राज्य विभाजन की सीमाएं भी इस स्थान से सम्यक् घटित हो जाती हैं। सम्भव है कि उस समय वर्धमानपुर जैन संघ का केन्द्र रहा हो तथा तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /125
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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