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प्रश्न 17: अन्योन्याभाव और अत्यन्ताभाव का अन्तर स्पष्ट कीजिए। उत्तरः दोनों अभाव होने पर भी इन दोनों में पारस्परिक अन्तर इसप्रकार है - अन्योन्याभाव
अत्यन्ताभाव 1. एक वर्तमान पुद्गल स्कन्ध का | एक स्वचतुष्टयात्मक द्रव्य का दूसरे
दूसरे वर्तमान पुद्गल स्कन्ध में नहीं | स्वचतुष्टयात्मक द्रव्य में नहीं होना,
होना, अन्योन्याभाव है। अत्यन्ताभाव है। 2. यह मात्र वर्तमान कालीन पुद्गल | यह सभी द्रव्यों में सदा घटित होता है।
स्कन्धों में घटित होता है। 3. यह त्रैकालिक नहीं है। यह त्रैकालिक है। 4. इससे पुद्गल स्कन्धों की परस्पर | इससे सभी द्रव्यों की परस्पर निरपेक्ष,
निरपेक्ष, स्वतन्त्रता सिद्ध होती है। स्वतंत्र सत्ता सिद्ध होती है। 5. इसे न मानने पर सभी पुद्गल- | इसे न मानने पर सभी द्रव्य मिलकर एक
स्कन्ध मिलकर एक हो जाएंगे; | हो जाने से किसी का कोई अपना जिससे भेद-प्रभेदमय कर्म सिद्धान्त, | सुनिश्चित स्वरूप सिद्ध नहीं हो पाने के भक्ष्य-अभक्ष्य आदि की व्यवस्था | कारण स्व-पर का भेदविज्ञान आदि नहीं बन सकेगी।
सम्भव नहीं हो सकेगा। 6. यह मात्र पुद्गल की वर्तमान कालीन | यह पृथक्-पृथक् सभी द्रव्यों की स्वभावविभाव पर्यायों में घटित होता है। विभाव सभी पर्यायों में घटित हो
| जाता है। इत्यादि अनेक प्रकार से दोनों में पारस्परिक अन्तर है।
प्रश्न 18: 'ज्ञानावरण कर्म के क्षय से केवलज्ञान की प्राप्ति होती है' – इस कथन की अभावों के संदर्भ में समीक्षा कीजिए।
उत्तरः ज्ञानावरण कर्म का क्षय पौद्गलिक कार्मण वर्गणा का परिणमन है; केवलज्ञान जीव के ज्ञानगुण का पूर्ण विकसित परिणमन है। पुद्गल कर्म और जीव - इन दोनों में अत्यन्ताभाव होने से, दोनों ही एक-दूसरे से पूर्ण निरपेक्ष, परिपूर्ण सत् हैं । दोनों में अपना-अपना कार्य अपनी-अपनी परिपूर्ण स्वतन्त्र योग्यता से होता है; एक-दूसरे के कारण नहीं। इसप्रकार ज्ञानावरण का क्षय उसकी अपनी
चार अभाव /120