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इत्यादि अनेकानेक लाभ अत्यन्ताभाव को समझने से प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 15: चारों अभावों को समझने से होनेवाले लाभों का अत्यंत संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तरः इन चारों अभावों को समझने से स्वाधीनता का भाव जागृत होता है, पर से आशा की चाह/पराधीनवृत्ति समाप्त हो जाती है, भय का भाव नष्ट होकर निर्भय/निश्चिन्तता व्यक्त होती है, भूतकाल और वर्तमान कालीन कमजोरी और विकार देखकर उत्पन्न होनेवाली दीनता-हीनता-पामरता नष्ट होकर स्वसन्मुखता का पुरुषार्थ जागृत होता है, पर्यायमात्र से दृष्टि हटकर अपने शाश्वत ज्ञानानन्द स्वभावी भगवान आत्मा में स्थिर होने से जीवन सहज सम्यक् रत्नत्रय-सम्पन्न अतीन्द्रिय आनन्दमय हो जाता है; इसकी ही पूर्णता में संसार से मुक्त हो सिद्ध दशा की प्राप्ति हो जाती है।
इत्यादि अनेकानेक लाभ अभावों को समझने से प्राप्त होते हैं। प्रश्न 16: प्रागभाव और प्रध्वंसाभाव का अन्तर स्पष्ट कीजिए। उत्तरः दोनों अभाव होने पर भी इन दोनों में पारस्परिक अन्तर इसप्रकार है -
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| प्रागभाव
प्रध्वंसाभाव 1. वर्तमान पर्याय का भूतकालीन पर्याय | वर्तमान पर्याय का भविष्यकालीन पर्याय
में अभाव प्रागभाव है। में अभाव प्रध्वंसाभाव है। 2. इसे स्वीकार नहीं करने पर प्रत्येक | इसे स्वीकार नहीं करने पर प्रत्येक पर्याय
पर्याय को अनादि की स्थाई मानना | को अनन्तकाल पर्यन्त स्थाई मानना पड़ेगा।
पड़ेगा। 3. इसे नहीं मानने पर अनादि का इसे नहीं मानने पर अनन्तकालीन
परिवर्तन अवरुद्ध होता है। परिवर्तन अवरुद्ध होता है। . ।। 4. प्रागभाव वर्तमान पर्याय को भूत- | प्रध्वंसाभाव वर्तमान पर्याय को भविष्य
कालीन पर्यायों से पूर्ण निरपेक्ष, | कालीन पर्यायों से पूर्ण निरपेक्ष स्वतन्त्र स्वतन्त्र सिद्ध करता है। सिद्ध करता है। इत्यादि अनेक प्रकार से दोनों में पारस्परिक अन्तर है।
तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /119