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________________ उपस्थित होंगी। आचार्य समन्तभद्रस्वामी ने इसे 'आप्तमीमांसा' में इसप्रकार व्यक्त किया है - . "भावैकान्ते पदार्थानामभावानामपनवात् । सर्वात्मकमनाद्यन्तमस्वरूपमतावकम् ।। एकान्त से पदार्थ को मात्र भावरूप मानने पर अभावधर्म का निषेध हो जाने से सभी सबरूप हो जाएंगे, प्रत्येक कार्य अनादि हो जाएगा, प्रत्येक कार्य अनन्त हो जाएगा, किसी का कुछ भी सुनिश्चित स्वरूप नहीं रहेगा। हे जिनेन्द्र देव ! आपको यह मान्य नहीं है।" इसप्रकार अभाव धर्म का पूर्णतया निषेध करने पर लौकिक-अलौकिक कुछ भी व्यवस्था सम्भव नहीं हो सकेगी। वस्तु का स्वरूप भावाभावात्मक होने से वीतरागी, सर्वज्ञ भगवान ने वस्तु के कथंचित् भाव धर्म और कथंचित् अभाव धर्म का निरूपण किया है; सर्वथा नहीं। प्रश्न 3: अभाव के मुख्य भेद बताते हुए प्रागभाव का स्वरूप स्पष्ट कीजिए। उत्तरः मुख्यतया अभाव के चार भेद हैं - प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अन्योन्याभाव और अत्यन्ताभाव। प्रागभाव – “कार्यस्यात्मलाभात्यागभवनं प्रागभावः- आत्म-लाभ (उत्पन्न) होने से पूर्व कार्य का नहीं होना प्रागभाव है।” अथवा “यदभावे हि नियमतः कार्यस्योत्पत्तिः सः प्रागभावः - जिसका अभाव होने पर नियम से कार्य की उत्पत्ति होती है, वह प्रागभाव है।" तात्पर्य यह है कि वर्तमान पर्याय का पूर्व की सभी पर्यायों में नहीं होना प्रागभाव है। ‘प्रागभाव' प्राक् और अभाव – इन दो शब्दों से मिलकर बना है। प्राक्-पहले में, अभाव नहीं होना; अर्थात् अभी की पर्याय का पहले की पर्याय में नहीं होना, प्रागभाव है। जैसे दही की पूर्व पर्याय दूध है । दूध में दही का नहीं होना प्रागभाव है; अन्तरात्मा पर्याय का बहिरात्मारूप पूर्व पर्याय में नहीं होना प्रागभाव है; सर्वज्ञ पर्याय का छद्मस्थरूप पूर्व पर्याय में नहीं होना प्रागभाव है; सिद्ध पर्याय का अरहन्तरूप पूर्व पर्याय में नहीं होना प्रागभाव है इत्यादि। प्रश्न 4: प्रागभाव नहीं मानने से होनेवाली हानिआँ स्पष्ट कीजिए। उत्तरः यदि हम प्रागभाव को स्वीकार नहीं करेंगे तो वर्तमानकालीन प्रत्येक तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /111
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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