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पाठ 7
चार अभाव
( आचार्य समन्तभद्रस्वामी का संक्षिप्त परिचय 'वीतराग विज्ञान विवेचिका' के पृष्ठ 83-84 पर पढ़िए । )
प्रश्न 1: अभाव किसे कहते हैं ?
उत्तरः एक का दूसरे में नहीं होने को अभाव कहते हैं । प्रत्येक पदार्थ द्रव्य, गुण, पर्यायात्मक; उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यात्मक; स्व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावात्मक; अनन्त धर्मात्मक, गुणात्मक, स्वभावात्मक, अनेकान्तात्मक है । जिस योग्यता के कारण वह अन्य रूप नहीं होता है, द्रव्य आदि अन्य रूप नहीं होते हैं, उसे अभाव कहते हैं । प्रत्येक पदार्थ भावाभावात्मक स्वभाव सम्पन्न है । जिसप्रकार स्वकी अपेक्षा भाव / सद्भाव / होना / रहना पदार्थ का स्वरूप है; उसीप्रकार पर की अपेक्षा अभाव / असद्भाव / नहीं होना नहीं रहना भी पदार्थ का स्वरूप है। आचार्य समन्तभद्रस्वामी अपने ‘युक्त्यनुशासन' नामक ग्रन्थ में इसे इसप्रकार व्यक्त करते हैं - “भवत्यभावोऽपि च वस्तुधर्मा, भावान्तरं भाववदर्हतस्ते । - हे अर्हन्त भगवान ! आपके अनुसार भावान्तर स्वभाववाला अभाव भी वस्तु का धर्म है । "
प्रश्न 2: अभाव धर्म को सर्वथा स्वीकार नहीं करने पर क्या समस्याएँ उपस्थित होंगीं ?
उत्तरः अभाव धर्म को सर्वथा स्वीकार नहीं करने पर अर्थात् जैसे वस्तु में एक भाव नामक धर्म विद्यमान होने से वस्तु सदा अपने स्वभावरूप बनी रहती है; उसीप्रकार एक अभाव नामक धर्म विद्यमान होने से वस्तु सदैव अन्य स्वभावरूप नहीं होती है - ऐसा स्वीकार नहीं करने पर वस्तु-व्यवस्था और विश्व-व्यवस्था सभी कुछ `खण्डित हो जाएगी। सभी पर्यायें एक-दूसरे रूप हो जाने से वे अनादि - अनन्त हो, जाएंगीं। सभी द्रव्य सभी रूप हो जाएंगे । उनका अपना कोई पृथक् स्वरूप नहीं रह सकेगा। जाति-अपेक्षा छह और संख्या - अपेक्षा अनन्तानन्त द्रव्य नहीं बन सकेंगे । उनका उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यात्मक स्वरूप नहीं बन सकेगा - इत्यादि अनेक समस्याएं
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