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________________ शिला/स्फटिक मणिमय अत्यंत धवल सिद्ध शिला के संगम के समान/सिद्ध रूप में स्थाई निवास के अवसर के समान यह धवल अक्षत मेरे मन को अति रुचिकर हो गया है। . इसप्रकार इस छंद द्वारा अक्षत/चावल के माध्यम से अक्षय शुद्धात्मा की अक्षय अखण्ड उपासना से प्राप्त अक्षत साम्राज्य/सिद्ध पद की भावना भाते हुए सीमंधर भगवान की उपासना की गई है। पुष्प -तुम सुरभित ज्ञान-सुमन हो प्रभु, नहिं राग-द्वेष दुर्गन्ध कहीं। सर्वांग सुकोमल चिन्मय तन, जग से कुछ भी संबंध नहीं।। निज अंतर्वास सुवासित हो, शून्यान्तर पर की माया से। चैतन्य-विपिन के चितरंजन, हो दूर जगत की छाया से।। सुमनों से मन को राह मिली, प्रभु कल्पबेलि से यह लाया। इनको पा चहक उठा मन-खग, भर चोंच चरण में ले आया।। लौकिक दृष्टि से वनस्पतिकायिक पुष्प में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं - 1. वह परिपूर्ण सुगंधित है, किसी भी रूप में दुर्गन्ध रंचमात्र नहीं है। 2. अत्यन्त कोमल होने से उस पर किसी अन्य का प्रभाव नहीं पड़ता है। 3. स्वयं स्वतः अंतरंग से सुगंधित होने के कारण उसकी सुगंध डाली पर लगे रहने तक कभी भी नष्ट नहीं होती है। 4. वास्तव में उसकी सुगंध स्वयं उसके लिए ही होती है; किसी ने उसका उपयोग किया कि नहीं, इससे उसका कुछ भी संबंध नहीं है। • 5. अनेक-अनेक विपरीत परिस्थितिओं/काँटों आदि के मध्य रहते हुए भी वह सतत विकसित रहता है। उन समस्त परिस्थितिओं से पूर्ण अप्रभावित रहता हुआ स्वयं में मस्त रहता है। इत्यादि अनेकों विशेषताएँ लौकिक पुष्प में पाई जाती हैं। प्रस्तुत छंद में पुष्प की इन क्षणिक विशेषताओं को वास्तविक रूप में भगवान पर घटित किया गया है। वह इसप्रकार - हे भगवन ! आप स्वयं अत्यन्त सुगंधित ज्ञानरूपी पुष्प हैं, आपमें राग-द्वेष आदि विकारी भावों की दुर्गंध किसी भी रूप में रंचमात्र नहीं है। आप अपने . सीमंधर पूजन 6
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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