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पर और विकार से निवृत्त होकर पूर्ण ज्ञान और आनन्ददशा को प्राप्त करनेवाले परमात्मा को नमस्कार इस जगत को आनन्द चाहिए। वह आनन्द कहाँ से आयेगा?
लेंडीपीपर में चौंसठ पुटी तिखास जो भरी पड़ी है, उसमें से तिखास आती है। जो स्वभाव भरा है, उस शक्ति का विकास होता है। प्राप्त की प्राप्ति होती है। आत्मा पूर्ण ज्ञान और आनन्द से भरे हुये स्वभाववाला है, उसमें से परमात्मदशा प्रगट होती है। जिनने एकमात्र ज्ञान और आनन्द से भरे हुए अन्तर आनन्द-कुण्ड का आश्रय लिया है, उन्हें ज्ञान और आनन्द पूर्ण प्रगट हुआ है। अज्ञानी जीव को ज्ञान और आनन्द शक्तिरूप है। साधक जीव को ज्ञान और आनन्द शक्तिरूप भी है तथा पर्याय में भी ज्ञान और आनन्द आंशिक प्रगट हुये हैं । परमात्मा को शक्ति में तथा व्यक्ति में भी पूर्ण ज्ञान और आनन्द है । अज्ञानी को ज्ञान और आनन्द जो शक्तिरूप है उसकी खबर नहीं; अतः वह वन्दन करने लायक नहीं है। साधकंदशा अधूरीदशा है, इसलिये उसे यहाँ नहीं लिया है; मात्र पूर्ण ज्ञान और आनन्ददशावाले आत्मा ही लिये हैं। ___ भगवान को तीनकाल-तीनलोक को जानते ही आकुलता नहीं रही और पूर्ण आनन्द प्रगट होते ही दुःख नहीं रहा। उन्हें उत्कृष्ट आत्मा पर्याय अपेक्षा से कहा गया है। शरीर-मन-वाणी से आत्मा पृथक है। हिंसा, झूठ, चोरी तथा दया-दानादि विकार है, किन्तु विकार रहित अंतर स्वरूप ज्ञान और आनन्दमय है, जो शक्तिरूप है, जिन्होंने वह दिव्य शक्ति प्रगट की है, ऐसे अरहन्त और सिद्ध उत्कृष्ठ आत्मा हैं, उन्हें यहाँ नमस्कार किया है। मुनि साधकदशा में हैं, इसलिये केवली परमात्मा को नमस्कार करते हैं।
- दिव्यध्वनिसार भाग १,पृष्ठ २ [ प्रवचनसार पर पूज्य गुरुदेव के प्रवचन ]
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