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सम्यग्दर्शन का विषय (द्वितीय) अध्यात्म की बरसातें करती हुई उनकी प्रज्ञा ने अज्ञान की जड़ें हिला दी हैं। तीर्थंकरों एवं वीतराग सन्तों के हृदय का मर्म खोलकर उन्होंने हमें तीर्थंकरों के युग तक पहुँचा दिया है। उनकी प्रज्ञा ने आगम के गम्भीर रहस्यों की थाह लेकर जो मर्म निकाले हैं वह इस युग का एक आश्चर्य-सा लगता है। वाणी का यह कमाल कि बयालीस वर्ष के धारावाहिक प्रवचनों में कहीं भी पूर्वापर विरोध नहीं है। आत्मप्रसिद्धि, नय-प्रज्ञापन एवं अध्यात्म-संदेश जैसी साहित्यिक निधियाँ उनकी निर्मल एवं पैनी प्रज्ञा के ऐसे प्रसव हैं जिन्हें देखकर आज के युग का बौद्धिक अहं उनके चरणों की धूल में धूसरित होकर गर्व का अनुभव करेगा।
उनके प्रवचनों से कल्पनातीत आध्यात्मिक साहित्य का सर्जन हुआ है। शाश्वत शान्ति के विधि-विधानों से भरे उनके आध्यात्मिक साहित्य ने भारतीय साहित्य का शीश विश्व में ऊँचा किया है। वह साहित्य युग-युग तक शान्ति के पिपासुओं को सच्ची शान्ति का दिशा-निर्देशन करता रहेगा।
उन्होंने जिस आध्यात्मिक क्रान्ति को जन्म दिया है, उसने युग के प्राण मौत के मुंह से निकाल दिये हैं। आज जन-जन के श्वासप्रश्वास में अमरत्व का संचार होने लगा है। आज के त्रस्त जन- . जीवन को उनकी वाणी में सही राह एवं राहत मिली है। अत: निष्पक्ष दृष्टि से श्री कानजीस्वामी का युग भारतीय इतिहास एवं श्रमण संस्कृति का निश्चित ही एक स्वर्ण युग होगा।
उन्होंने भारतीय इतिहास में एक बेजोड़ अध्याय जोड़ा है। वे उस क्रान्ति के उन्नायक महामानव हैं जिसका जन्म रक्त में नहीं विरक्त में होता है। जिस क्रान्ति के उदय में आत्मा