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चैतन्य की चहल-पहल
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क्लान्ति का नहीं वरन् मंगलमय शान्ति का संवेदन करता है। लक्ष लक्ष मानवों ने उनकी इस शान्तिवाहिनी क्रान्ति का समर्थन किया है और उसके सत्य को परख कर उसमें दीक्षित हुए हैं। आज लोक का यह स्वर कि "यदि यह मुक्तिदूत नहीं होता तो हमारी . क्या दशा होती ? लोक हृदय की सच्ची अभिव्यंजना है। निस्संदेह श्री कानजीस्वामी लोक मांगल्य की प्रतिष्ठा करने वाले एक लोकदृष्टा एवं लोकसृष्टा युगपुरुष हैं।
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इन महापुरुष का अन्तर जैसा उज्ज्वल है, बाह्य भी वैसा ही पवित्र है। उनकी अत्यन्त नियमित दिनचर्या, सात्त्विक एकरूप एवं परिमित आहार, आगम सम्मत सत्य सम्भाषण, करुण एवं सुकोमल हृदय उनके विरल व्यक्तित्व के अभिन्न अवयव हैं। ८७ वर्ष की अति वृद्ध अवस्था में भी उनकी दिनचर्या इतनी नियमित एवं संयमित है कि एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाता । “समयं गोयम मा मा वीर वाणी उनके जीवन में अक्षरश: चरितार्थ हुई है। शुद्धात्म तत्त्व का अविराम चिन्तन एवं स्वाध्याय ही उनका जीवन है। जैन श्रावक के पवित्र आचार के प्रति वे सदैव सतर्क एवं सावधान हैं। उसका उल्लंघन उन्हें सह्य नहीं है। उनके जीवन का प्रत्येक स्थल अनुकरणीय है। निश्चित ही वे इस जगत् के वैभव हैं और पाकर गौरवान्वित हुआ है।
युग उन्हें
वे युगपुरुष युगों-युगों तक मुक्ति का संदेश प्रसारित करते हुए युग-युग जीवें, यही आज युग के अन्तस् की एकमात्र कामना है।
मैं उन युगपुरुष की ८७ वीं जयन्ती के पुण्य पर्व पर अपनी श्रद्धा के अनन्त सुमन उनके चरणों में चढ़ाता हूँ ।