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________________ सम्यग्दर्शन का विषय (द्वितीय) (पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी एवम् उनका जीवन दर्शन) ... 'अहंमय ध्रुव' श्रद्धा का श्रद्धेय नहीं होता। श्रद्धा का श्रद्धेय इतना पूर्ण एवं सर्वोपरि होता है कि वह उसमें अपने को मिलाने का अवकाश नहीं पाती। वास्तव में पूर्ण' में 'पूर्ण के अहं' के मिलने की भी कोई गुंजाइश नहीं है। और तो और सम्यग्दर्शन के घर में स्वयं सम्यग्दर्शन के रहने के लिए भी कोई जगह नहीं है। उसने अपना कोना-कोना ध्रुव के लिए खाली कर दिया है। पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी इस युग के एक महान् एवं असाधारण व्यक्तित्व हैं। उनके बहुमुखी व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने सत्य से बहुत दूर जन्म लेकर स्वयं-बुद्ध की तरह स्वयं सत्य का अनुसंधान किया एवं अपने प्रचण्ड पौरुष से जीवन में उसे आत्मसात् किया। इस जीवन में शुद्ध अन्तस्तत्त्व की देशना के लिए उन्हें किन्हीं गुरु का योग नहीं मिला, फिर भी उन्होंने तत्त्व को पा लिया; क्योंकि सद्गुरु की देशना को वे इस जीवन से पूर्व ही उपलब्ध कर चुके थे। पूर्व देशना से प्राप्त उनका तत्त्वज्ञान इतना परिपूर्ण एवं परिमार्जित था कि वह इस भवान्तर तक भी उनके साथ रहा और उसी ने उन्हें आलोक दिया। उन्होंने तो आगम की नैसर्गिक पद्धति में तत्त्व को उपलब्ध कर ही लिया, किन्तु मेरी कल्पना यह है कि इस युग में अन्तस्तत्त्व के बोध के लिए यदि वे
SR No.007142
Book TitleChaitanya Ki Chahal Pahal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugal Jain, Nilima Jain
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year2012
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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