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________________ नाथूलालजी शास्त्री ने प्रतिष्ठा प्रदीप में लिखा है। आदरणीय बाबू श्री जुगलकिशोरजी 'युगल' के शब्दों में कहें तो 'जैसे लौकिक सुख-शान्ति के लिए लोकशासन का एक विधान होता है, जिसके अन्तर्गत नियन्त्रित एवं अनुशासित लोक-जीवन सुखी रहता है; उसी प्रकार लोकोत्तर आत्मशान्ति के लिए सन्तों ने लोकोत्तर शासन स्वीकार किया है, जिसका एक सार्वदेशीय एवं सार्वकालिक विधान होता है और उस शासन का प्रतीक, विशिष्ट ध्वज' होता जैनदर्शन एक ऐसा ही शासन है, जिसने विश्व के अणु-अणु की प्राकृतिक स्वतन्त्रता के आधार पर आत्मा की परम शान्ति एवं स्थायी मुक्ति का विधान निर्दिष्ट किया है। दिगम्बर जैन श्रमण, उस मुक्ति के विधान का अनुशीलन करते हुए जीवन में उसे परिणति देते हैं; अत: 'जैन-ध्वज' भी उन्हीं अरहन्त, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय एवं साधु-इन पाँच प्रकार के श्रमणों के प्रतीक के रूप में स्वीकृत है। ध्वजारोहण एवं ऐसे ही अन्य सभी समारोह एवं अनुष्ठानों के पवित्र अवसरों पर श्रमणों की पावनता को आत्मसात् करने के लिए इन्हीं पाँच श्रमणों का स्मरण एवं वन्दन किया जाता है।' यही कारण है कि धर्मध्वज को शिवपुर-पथ-परिचायक, दु:खहारक, सुखकारक, दयाप्रवाहक, भविजनतारक, कर्म
SR No.007136
Book TitlePanch Kalyanak Kya Kyo Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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