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विदारक, चिरसुख-शान्ति-विधायक आदि विशेषणों से सम्बोधित किया जाता है। कहा भी है- 'विश्व हितैषी वीर दुलारा, उड़े गगन में झण्डा प्यारा । '
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प्रश्न 12 - विधिनायक से क्या तात्पर्य है? उत्तर - पञ्च-कल्याणकों में अलगअलग अनेक तीर्थङ्करों की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की जाती हैं, उनमें धातु की इञ्च की एक प्रतिमा को मुख्य मानकर, समस्त पञ्च-कल्याणक की विधियाँ इसी के माध्यम से सम्पन्न होती हैं; इस कारण इस प्रतिमा को पञ्च - कल्याणक में 'विधिनायक' घोषित किया जाता है। गर्भ के समय प्रतिमा 'मञ्जूषा' में रखी जाती है; जन्म के समय प्रतिमा का 1008 कलशों द्वारा पाण्डुकशिला पर जन्माभिषेक होता है। इसी प्रतिमा को सुन्दर - सुन्दर सजीले वस्त्र पहनाते हैं; दीक्षाकल्याणक में इसी प्रतिमा को दीक्षा-विधि के माध्यम से मुनि का स्वरूप प्रदान करते हैं । केवलज्ञानकल्याणक के बाद इसी प्रतिमा को समवसरण में विराजमान करते हैं तथा मोक्ष-विधि भी इसी प्रतिमा पर दर्शायी जाती है। अन्य प्रतिष्ठा योग्य प्रतिमाओं पर संक्षेप में विधियाँ की जाती हैं। इसी प्रतिमा के चिह्न के आधार पर पञ्च-कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के नाम का निर्धारण किया जाता है । यहाँ विधिनायक भगवान श्री आदिनाथ (ऋषभदेव) हैं।
प्रश्न 13 - मूलनायक प्रतिमा किसे कहते हैं?
उत्तर - प्रत्येक मन्दिर की प्रमुख प्रतिमा को मूलनायक प्रतिमा कहा जाता है तथा मन्दिर का नामकरण मूलनायक प्रतिमा
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