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________________ 86 परमार्थवचनिका प्रवचन प्रकार का मोक्षमार्ग है, पराश्रितभाव वह मोक्षमार्ग नहीं है। पराश्रितभाव को मोक्षमार्ग माननेवाले की चाल मोक्षमार्ग से विपरीत है। स्वाश्रित मोक्षमार्ग का वर्णन करते हुये समयसार गाथा २७६-२७७ में कहा है कि - आचारांग का ज्ञान, नवतत्त्व की भेदरूप श्रद्धा अथवा छह जीवनिकाय की दया का शुभपरिणामरूप व्यवहारचारित्र – ऐसे जो पराश्रितभाव, उनके आश्रय से सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्ग मानने में दोष आता है; क्योंकि ऐसे पराश्रित ज्ञानादिभाव अज्ञानी के भी होते हैं, किन्तु उसके मोक्षमार्ग नहीं होता। ज्ञानी के ऊपरी दशा में ऐसे पराश्रितभाव नहीं होते तो भी मोक्षमार्ग होता है, अतः पराश्रितभावों में मोक्षमार्ग है नहीं। शुद्धात्मा ही सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का आश्रय है और वहाँ अवश्य मोक्षमार्ग है। जहाँ शुद्धात्मा का आश्रय नहीं है, वहाँ मोक्षमार्ग भी नहीं है। इसप्रकार मोक्षमार्ग स्वाश्रित ही है, पराश्रित नहीं; अतः पराश्रित ऐसा व्यवहार निषेध करने योग्य है, हेय है। स्वसत्ता के अवलम्बन से ही धर्मी जीव मोक्षमार्ग को साधता है, परावलम्बी ज्ञानादि को मोक्षमार्ग नहीं मानता। .. अरे जीव! तेरी ज्ञानधारा में भी जितना परावलम्बन है, वह मोक्ष का कारण नहीं है तो फिर सर्वथा परावलम्बी राग मोक्ष का कारण होगा ही कैसे? और फिर बाह्यनिमित्त तो कहाँ रह गये? अरे, ऐसा दुर्लभ अवसर पाकर भी हे जीव! यदि तूने अपने स्वज्ञेय को नहीं जाना और स्वाश्रय से मोक्षमार्ग नहीं साधा तो तेरा जीवन व्यर्थ है। यह अवसर बीत जाने पर तू पछतायेगा। प्रश्न - निमित्त और व्यवहार को आप महत्त्व नहीं देते और मात्र अध्यात्म को ही महत्त्व देते हो, किन्तु जगत में अध्यात्म की बात को पूछता ही कौन है? व्यवहार और निमित्त की बात को तो सभी जानते हैं।
SR No.007132
Book TitleParmarth Vachanika Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Rakesh Jain, Gambhirchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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